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ग्यारहवीं और बारहवीं शताब्दी के विद्वान्, आचार्य ने सकली करहाटक में धर्मरत्नाकर की रचना की थी । प्रस्तुत भावसेन ११वी शताब्दी के पूर्वार्ध के विद्वान् थे। इनकी कोई कृति प्राप्त नहीं है।
महाकवि हरिचन्द्र हरिचन्द्र नाम के अनेक विद्वान हो गए है। एक हरिचन्द्र का उल्लेख चरकसंहिता के टीकाकार के रूप में मिलता है । इनका आनुमानिक समय ईसाको प्रथम शताब्दी है । कवि बाणभट्ट ने हर्षचरित के हरिचन्द्र का उल्लेख किया है। राजशेखर की काव्य मीमांसा में भी हरिचन्द्र का उल्लेख मिलता है। गउडवहो में भास, कालिदास और सुबन्धुके साथ हरिचन्द्र का नामोल्लेख आता है। किन्तु प्रस्तुत हरिचन्द्र उक्तकवियों से भिन्न हैं । इन महाकवि हरिचन्द्र का जन्म सम्पन्न परिवार के नोमक वंश में हश्रा था। इनके पिता का नाम आर्द्रदेव और माता का नाम रथ्यादेवी था। इनकी जाति कायस्थ थी, परन्तु ये जैनधर्मावलम्बी थे। कवि ने स्वय अपने को परहन्तभगवान के चरण कमलों का भ्रमर लिखा है। इनके छोटे भाई का नाम लक्ष्मण था। जो इनका प्राज्ञाकारी भक्त और गृहस्थी का भार वहन करने में समर्थ था। धमशर्माभ्युदय को प्रशस्ति पद्यों से प्रकट है :
मुक्ताफल स्थिति रलंकृतिषु प्रसिद्धस्तत्रादेव इति निर्मल मूर्तिरासीत्। कायस्थ एव निरवद्य गुणग्रहः सन्नकोऽपि यः कलाकुलमशेषमलंचकार ॥२ लावण्याम्बुनिधिः कलाकुलग्रहं सौभाग्य सद्भाग्ययोः, । क्रीडावेश्मविलासवासवलभी भषास्पदं संपदाम् । शौचाचारविवेकविस्मयमही प्राणप्रिया शूलिनः, शर्वाणीव पतिव्रता प्रणयिनी रोत तस्याभवत् ॥३ प्रहत्पदाम्भोरुहचञ्चरीकस्तयोः सुतः श्रीहरिचन्द पासीत । गुरुप्रसादामला बभवुः सारस्वते स्रोत सि यस्य वाचः॥४ भक्तेन शक्तेन च लक्ष्मणेन निर्व्याकुलो राम इवानुजेन ।
याः पारमासादित बुद्धिसेतुः शास्त्राम्बुराशेः परमाससाद ॥५ महाकवि हरिचन्द्र काव्यशास्त्र के निष्णात विद्वान थे। उन्होंने कालिदास के रघुवंश, कुमारसंभव, किरात तथा शिशपाल वध के साथ चन्द्रप्रभचरित, तत्वार्थ सूत्र, और उत्तर पुराण आदि जैन ग्रन्थों का अध्ययन किया था। यद्यपि उन्होंने अपने से पूर्ववर्ती कवियों की रचनाओं का अवलोकन किया था और उनसे कुछ प्रेरणा भी ग्रहण की है किन्त उनके पद वाक्यादि का कोई उपयोग नही किया। क्योंकि कवि को सभी सन्दर्भो में मौलिकता व्याप्त है। सिद्धान्त शास्त्री पं० कैलाशचन्द्र जो ने महाकवि हरिचन्द्र के समय-सम्बन्धि लेखमें धर्मशर्माभ्युदय की वीरनन्दी के चन्द्रप्रभचरित के साथ तुलना करके लिखा है कि दोनों ग्रन्थों में अत्यधिक समानता है तो भी काव्य की दष्टि से हमें चन्द्रप्रभका धर्मशर्माभ्युदय पर कोई ऋण प्रतीत नही होता। क्योकि महाकवि हरिचन्द्र माघ आदि की टक्कर के कवि हैं।
महाकवि ने इस महाकाव्य में उन समस्त गुणों का वर्णन किया है जिनका उल्लेख कवि दण्डी ने किया १ पदबन्धो ज्ज्वलोहारी रम्य वर्णपदस्थितिः ।
भट्टारक हरिचन्द्रस्य गद्यबन्धो नपायते ॥ हर्षचरित १-१३ पृ० १० २ हरिचन्द्र चन्द्रगुप्तो परीक्षिता विह विशालायाम् ।।
-का० मी० अ०१०प० १३५ (विहार राष्ट्रभाषा संस्करण, १९५४ ई०) ३ भासम्मि जलणमित्ते कत्ती देवे अजस्म रहुआरे । सो बन्धवे अ बंधम्मि हरिचंदे अ आणंदो।।८००
-गउडवहो भाण्डार कर ओरियण्टल इन्स्टीट्यूट पूना १९२७ ई०। ४ देखो, अनेकान्त वर्ष ८ किरण १७-१० पृ० ३७६