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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास-भाग २ अहिच्छत्र पुरोत्पन्नः प्राग्वाटकुलशालिनः ।
छाहडस्य सुतश्चके प्रबन्धं वाग्भटः कविः ॥ इममे स्पष्ट है कि ववि का जन्म अहिच्छत्रपूर मे हा था। उनके पिता का नाम छाहड़ पोर कुल प्राग्वाट (पोरवाड) था । अहिच्छत्रपुर नाम के दो नगगे का उल्लेख मिलता है। उनमें एक अहिच्छत्रपूर उत्तरी पचाल की गजधानी था, जो एक पुगतन ऐतिहामिक नगर है। विविध तीर्थ कल्प (पाठ १४) मे इसका प्राचीन नाम 'सग्वावती दिया है । अहिच्छत्र का नाम तेईसव तीर्थकर भगवान पार्श्वनाथ के उपर्मग के जोतने और कैवल्य प्राप्त करने के कारण लोक में प्रसिद्व हना है । सोलह जनपदो में पनाल का नाम पाया है। उममें पचाल जनपद के दो भाग बतलाये है ; उत्तर और दक्षिण । उत्तर पचाल की राजधानी अहिच्छत्र योर दक्षिण को राजधानी काम्पिल्य । सातवी शताब्दी के प्रसिद्ध आचार्य पात्र वेसरी ने अहिच्छत्र के राजा को मेवा का परित्याग करके जेन दीक्षा ले ली थी । और बौद्धो के विलक्षण हेतु का निरसन करने के लिये विलक्षणक दर्थन' नाम का एक विशाल दानिक ग्रन्थ बनाया था। जो इस समय अनुपलब्ध है। दूसरे अहिच्छत के राजा दुर्मख की कथा जगत प्रसिद्ध है । वडा राजा वमपाल ने पार्श्वनाथ का एक विशाल मन्दिर बनवाया था और उसमे वलात्मक सुन्दर पाश्वनाथ की मति का निर्माण कराकर उसे वहा प्रातष्ठित किया था पार कलाकार का प्रचर द्रव्य प्रदान किया। नागपुर और अहिच्छत्रपूर कहा जाता था। पर उसकी इतनी प्रमिद्धि नही थी। पोरन वह तीर्थ ही कहलाता था। अस्तु यह निर्णय करना यहा शक्य नहीं है, किस अहिच्छत्रपुर में वाग्भट का जन्म हना था। इसके लिये प्राचीन प्रमाणों के अन्वेषण की अावश्यकता है। तभी दमका निर्णय हो सकेगा।
रचना
कवि की एक मात्रकृति 'नेमिनिर्वाण' काव्य है, जो १५ सर्गों में विभाजित है। और जिसकी श्लोक संख्या ६५६ है । इस काव्य में भगवान नेमिनाथ का जीवन वृत्त अकित है।
प्रथम सर्ग में चतुर्विशति तीर्थकरों का सुन्दर स्तवन दिया हुआ है। महाराज समुद्र विजय पुत्र के प्रभाव मे चिन्तित रहते थे। उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिये अनेक व्रतो का अनुष्ठान किया था।
दूसरे सर्ग मे रानी ने रात्रि के पिछले भाग मे सोलह स्वप्न देखे, महारानी शिवा की सेवा के लिये देवाग. नाए आई ओर अनेक तरह मे माता की सेवा करने लगी
तीमरे मर्ग मे गनी ने राजा से स्वप्नो का फल पूछा, गजा ने बतलाया कि तुम्हे लोकमान्य पुत्र रत्न की प्राप्ति होगी, जो लोक का कल्याण कर मूक्ति को प्राप्त करेगा।
चौधे सर्ग में तीर्थकर क गर्भ में आने से रानी के सौन्दर्य की अभिवृद्धि होना पोर थावण शुक्ला षष्ठी क दिन पुत्र का जन्म हया, तीर्थकर के जन्माभिषेक की सूचना चागे निकाया के देवों को घण्टा, और शखध्वनि प्रादि से प्राप्त हई और वे मपरिकर द्वागवनी में पाये।
१ म्व० म०म० ओझा जी के अनुसार 'नागौर का पुराना नाम नागपुर या अहिच्छात्र पुर था।
-देखो, नागरी प्रचारिणी पत्रिका भा० २ १० १०६ २ देखो, अनेकान्त वर्ष २४ किरण ६ पृ० २६५ मे प्रकाशित लेखक का उत्तर पचाल की गजधानी अहिच्छत्र नाम
का लेख । ३ भूभृत्पदानुवर्ती मन गज सेवा पगॅगमुखः । सयतोऽपि च मोक्षार्थी भात्यमौ पात्र केशरी ॥
देखो,-नगरतालुक शिलालम्ब ४ हरिषेण कथा कोश की १२ वी कथा १० २२ ५ हरिषेण कथा कोशकी २०वी कथा ।