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जैन धर्म का प्राचीन इतिहास - भाग २
ईसा की १२वीं शताब्दी के विद्वान आ० मलयगिरि ने आवश्यक निर्युक्ति टीका ( पृ० ३७१A) में लघीयस्त्रय की एक कारिका का व्याख्यान करते हुए 'टीका कारके' नाम से न्याय कुमुद चन्द्र में किया गया उक्त कारिका का व्याख्यान भी उद्धत किया है । १२वीं शताब्दी के विद्वान देवभद्र ने न्यायावतार टीका टिप्पण ( पृ० २१,७६) में प्रभाचन्द्र और उनके न्याय कुमुदचन्द्र का नामोल्लेख किया है। अतः १२ वीं शताब्दी के इन विद्वानों के उल्लेख से स्पष्ट होता है कि प्रभाचन्द्र १२ वी शताब्दी के पूर्वार्ध से आगे के विद्वान नहीं हो सकते ।
रचनाएं
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आचार्य प्रभाचन्द्र की निम्न कृतियां प्रसिद्ध हैं - १ तत्त्वार्थ वृत्ति पद विवरण (सर्वार्थ सिद्धि के विषमपदों का टिप्पण । २ प्रवचन सरोज भास्कर ( प्रवचनसार टीका) ३ प्रमेय कमलमार्तण्ड ( परीक्षामुख व्याख्या) ४ न्याय कुमुदचन्द्र ( लघीयस्त्रय व्याख्या) ५ शब्दाम्भोज भास्कर ६ महापुराण टिप्पण ७ गद्य कथा कोश (आराधना कथा प्रबन्ध) ८ पंचास्तिकाय प्रदीप (पंचास्तिकाय टीका ) ६ क्रिया कलाप टीका १० रत्नकरण्ड श्रावकाचार टीका ११ समाधितंत्र टीका १२ ।
तत्त्वार्थ वृत्तिपद विवरण- यह तत्त्वार्थ वृत्ति (सर्वार्थसिद्धि) के अप्रकट - विपमपदों का विवरण है । प्रभाचन्द्र ने इस विवरण में वृत्ति के कथन को पुष्ट करने के लिए अनेक ग्रन्थों के वाक्यों को उद्धृत किया है। उन ग्रन्थों में अनेक ग्रन्थ प्राचीन और पूर्ववर्ती हैं। और कुछ समसामयिक तथा उनसे कुछ वर्ष पहले के हैं। मूलाचार, भाव पाहुड, पंच संग्रह, सिद्धभक्ति, युक्त्यनु शासन, भगवती आराधना प्रष्टशती, गोम्मटसार जीव कांड, संस्कृत पंचसंग्रह और वसुनन्दि श्रावकाचार । इनमें संस्कृत पंच संग्रह के कर्ता श्रमितगति (द्वितीय) वि० सं० १०५० से १०७३ के विद्वान हैं । उनका पंच संग्रह १०७३ की रचना है। और वसुनन्दि का समय १२ वीं शताब्दी बतलाया जाता है। यदि 'पडिगहमुच्चठ्ठाणं' गाथा वसुनन्दि की है, पूर्ववर्ती अन्य की नहीं है तब यह विचारणीय है कि उक्त गाथा के रहते हुए उक्त विवरण भी १२ वीं शताब्दी के प्रारम्भ में रचा गया है ।
प्रवचन सरोज भास्कर– प्राचार्य कुन्दकुन्द के प्रवचनसार की टीका है। प्रभाचन्द्र की इस टीका का नाम 'प्रवचन सरोज भास्कर' है । ऐ० पन्नालाल दि० जैन सरस्वती भवन बम्बई की यह ५३ पत्रात्मक प्रति सं० १५५५ की लिखी हुई है, और जो गिरिपुर में लिखी गई थी। इस प्रति में आचार्य अमृतचन्द्र के द्वारा प्रवचनसार टीका में अव्याख्यात ३६ गाथाएं भी प्रवचन सरोजभास्कर में यथा स्थान व्याख्यात हैं । जयमेनीय टीका में प्रवचन सरोजभास्कर का अनुकरण किया गया है। प्रभाचन्द्र ने जब अवसर देखा तभी उन्होंने संक्षेप से दार्शनिक मुद्दों की चर्चा की है । टीका प्रति संक्षिप्त होते हुए भी विशद है। इसका पुष्पिका वाक्य निम्न प्रकार है :- "इति श्री प्रभाचन्द्र विरचिते प्रवचन सरोज भास्करे शुभोपयोगाधिकार समाप्त : ।"
प्रमेय कमल मार्तण्ड - यह माणिक्यनन्दी प्राचार्य के 'परीक्षामुख' नामक सूत्र ग्रन्थ की विस्तृत व्याख्या है | चूँकि परीक्षामुख सूत्र शुद्ध न्याय का ग्रन्थ है । अतः प्रमेयकमलमार्तण्ड का प्रतिपाद्य विषय भी न्यायशास्त्र से सम्बन्धित है | सन्मति टीकाकार अभयदेव सूरि और स्याद्वाद रत्नाकर के रचयिता वादिदेव सूरि ने इस ग्रंथ का विशेष अनुसरण किया है । स्याद्वाद रत्नाकर में तो प्रमेयकमलमार्तड के कर्ता का नाम निर्देश भी किया है । और स्त्रीमुक्ति तथा केवलभुक्ति के समर्थन में उसकी युक्तियों का खण्डन भी किया है । वादिदेव का जन्म वि० सं० ११४३ में और स्वर्गवास सं० १२२२ में हुआ था । वे सं० १९७४ में आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हुए थे । इसके बाद उन्होंने सं० १९७५ (मन् १९१८) लगभग स्याद्वाद रत्नाकर की रचना की होगी। स्याद्वाद रत्नाकर में प्रमेय कमल मार्तण्ड और न्याय कुमुदचन्द्र का न केवल शब्दार्थानुसरण ही किया गया है किन्तु कवलाहार समर्थन प्रकरण तथा प्रतिबिम्ब चर्चा में प्रभाचन्द्र और उनके प्रमेयकमलमार्तण्ड का नामोल्लेख करके खंडन किया है। प्रभाचन्द्र इनसे बहुत पूर्ववर्ती हैं। उनकी उत्तरावधि सन् १९०० ई० है प्रभाचन्द्र की यह टीका प्रमेय बहुल है । प्रमेय कमल मार्तण्ड की यह रचना धाराधीश भोज के राज्य काल में हुई है ।
न्याय कुमुदचन्द्र - अकलंक देव के लघीयस्त्रयकी टीका है। प्रवेश हैं -प्रमाण प्रवेश नयप्रवेश और प्रवचनप्रवेश । प्रथम प्रवेश में ४
मूल लघीयस्त्रय में ७८ कारिकाएं और तीन परिच्छेद हैं, दूसरे में एक और तीसरे में दो