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ग्यारहवीं-बारहवी शताब्दी के विद्वान, आचार्य
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इसमें गृहस्थ ओर मुनियों के प्राचार का व्यवस्थित वर्णन है। उसका सकलन सम्बद्ध पौर सुन्दर है। कथन की सम्बद्धता हो उसकी प्रमाणिकता का मापदण्ड है, यह ग्रन्थ हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशित हो चुका है।
गोम्मटमार की देशी कर्णाटक वृनि भी इनकी बनाई हुई कही जातो हे पर वह अभी तक उपलब्ध नही
चिककवेट पर इनके द्वारा एक वदि बनाये जाने का उल्लेख मिलता है। इनके पुत्र का नाम जिनदेवण था, जो अजितसेनाचार्य का शिप्य था। जिनदेवण ने श्रवणवल्गोल में जिन मन्दिर का निर्माण कराया था। यह लेख शक स०६६२ (मन् १०४०) में उत्कीर्ण किया गया है।
महाकवि वीर ___ कवि वीर लाडवागड वश के गृहस्थ विद्वान् थे। उनके पिता का नाम देवदत्त था, जो अच्छे विद्वान् कवि थे । इनके पुत्र वीर कवि ने अपने पिता की चार कृतियों का उल्लेख किया है। पद्धडिया छन्द में वरागचरित, सरस चच्चारया बध मे शान्तिनाथ का महान यशोगान (शान्तिनाथ गस) विद्वत्सभा का मनोरजन करने वाली सद्धय वीर कथा, और अम्बादेवी का गग । खद है कि कवि देवदत्त की ये चारों रचनाएं उपलब्ध नहीं है । कवि मालवा के गुडखेड ग्राम के निवासी थे । गडखेड नाम का यह गाव मालवा में गिन्धवी नगरी के सन्निकट कही बसा हया था। पूर्व मालवा में जमूना से निकलने वाली एक छोटो नदी का नाम काली सिन्धु या मिन्ध नदी है । यह नदी प्राचीन दशार्ण क्षेत्र में जिमकी प्राचीन गजधानी विदिशा थी, में बहती हई पद्मावती नामक स्थान पर पाकर चर्मण्वती (चवल) नदी से भोपाल के निकट निकलने वाली पाग नदी में मिल जाती है । और आगे जाकर दोनो नदिया वतवा में गिर जाती है । इमी मिन्ध नदी के किनारे पर भोपाल के पूर्व और विदिशा मे उत्तर में सिन्धवी नगरी रही होगी। इस नगरी के माप ही कही गडखेड ग्राम बमा हना होगा। कवि देवदत्त का समय स० १०५० है । कवि का अम्बादेवी गम नाल और लय के साथ गाया जाता था। और जिन चरणों के समीप नृत्य किया जाता था, यह सम्यक्त्वरूपी महाभार की धरा के धारक थे।
कवि देवदत्त की सतुवा भार्या से विनय सम्पन्न वीर नाम का पुत्र उत्पन्न हुआ था। कवि के बुद्धिमान तीन छोटे महोदर भाई और भी थे। जो सीहल्ल, लक्षणाक और जसई नामो मे विख्यात थे । वीर कवि ने कहा और किसमे शिक्षा पाई. इसका कोई उल्लेख नहीं किया। कवि ने शब्द शास्त्र, छन्द शास्त्र, निघट, तर्क शास्त्र तथा प्राकृत काव्य मेतबंध का अध्ययन किया था, मिद्धान्त शात्रों के अध्ययन के साथ लोकिक शिक्षा में भी निपुणता प्राप्त की थी। केवल काव्य रचना उनके जीवन का व्यापार नही था किन्तु वह राज्य कार्य, अर्थ और काम की चर्चानों में भी सलग्न रहता था । व्यस्त जीवन रहने गे हो उसे जबूस्वामी चरित की रचना में एक वर्ष का समय लगा था। कवि की चार स्त्रियों थी। जिनवती, पं.मावती, लीलावती और जयादेवी। पहली पत्नी से नेमचन्द्र नाम का एक पुत्र भी
१ गिन ग्रहयं बनगो नदोल जनमेल्न पोगले मन्त्रि-चामुण्डन नन्दनोलवि माडिमिद जिन देवणनजितमन-मनिबर गृह ॥१
-जैनलेख सं० भा० १ पृ० १४६ १. सह अन्थि परम जिगण पयमरगा, गुलखेड विरिणगरउ सुहचरण । मिरिनाढवग्गु हि विमल जग, कइ देवयत्तु निम्बूढ कसु । बह भावह जे वरगचरिउ, पद्धडियाब उद्धरिउ । कविगूगगरम रनियविउमह, वित्थरिय सुद्दय वीर कह । चच्चग्यिबधि विग्इउ मग्मु, गाइज्जइ सतिउ तारजसु । नच्चिज्जर जिगणपय मेवाह, किउ गसउ अंबादेवाह । मम्मत्तमहाभरधुग्धरहो, तहो सरसददेवि लद्धवरहो।
-जबू सामिचरिउ १-४