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जैनधर्म . जीवन और जगत्
जैसे धागे मे पिरोई हुई सुई कही गिर भी जाए तो भी गुम नही होती, आसानी से मिल जाती है, वैसे ही तत्त्व-विद्या-सम्पन्न व्यक्ति अपने पथ से, अपने लक्ष्य से कभी भटकता नहीं। कदाचित् भ्रमित हो भी जाए तो तत्त्व-ज्ञान के सहारे पुन सही रास्ते पर आ जाता है। अपने आचार और व्यवहार को परिष्कृत करता रहता है। इस दृष्टि से व्यावहारिक जीवन मे भी तत्त्व-विद्या का मूल्य कम नही हो सकता ।