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१८३ यल शुद्ध पालियो जी॥ उत्तराध्ययन कथा अ धिकार, सूत्रमें चालियो जी ॥ शु० ॥८॥ सिंघ गुंफावासी साध, रतनकंबल लावीयो जी ॥तिणरो वेश्या कीयो धिक्कार, पी परता इयो जी ॥शु०॥९॥ए संसार समुद्र अगाध, तिरवो ने सोहिलो जी ।। दृढ रहेणों नारीनी पा स, घj ने दोहिलो जी ॥ २० ॥१०॥ दस लाख जोरावर जोध, शूरा जीपवा जी॥ एतो काम कठण दल जोर, दोरो खेवणो जी ॥शु. ६०॥११॥कठण परिसह एहवो, ज्ञानीदेवा क ह्यो जी ॥ सहीने गया ने मोद, नवारो खय क रयो जी॥शु०॥१२॥ इति स्त्रीपरिसह ॥८॥
दुहा ॥ नवमे परिसह साधु जी, चाले जया सहित ॥ ग्राम नगर पुर पाटणे, जीव द. यासुं प्रीत ॥१॥अथ चरिया परिसह ॥९॥ - ढाल ९ मी॥ मुनिवर हो मुनिवर, नवमो परिसह निरख ल्यो, करणो उग्रविहार होमुनिव र, चरिया नामें चालणं, कह्यो सिद्धांत मकार हो ॥ मु० ॥च० ॥१॥ चारे मास स्थिर रहे , रहेवू एकण ठाम हो॥॥ मु०॥आठ मास