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________________ मोहोठा साधु विदिश जी ॥ डंस मंसादिक मी ल उघाडे, खावे लोहीने मांसजी ॥धन धन साधुजी सहे परिसह ॥ १ ॥ जू लीख कीडी ने चांचम माकड, प्रावी लागे शरीर जी ॥ चाम डी पकमीने चटका देवे, शेंठा रहेवे सधीर जी ॥धन० ॥२॥खाज खणे नही विण पूंज्या, नही आणे मन खेद जी ॥ काटकीने अलगो नही करणो, लागी मुक्त उमेद जी ॥ धन० ॥ ॥३॥ घरगेडिने संजम लीधो, चरम जिणेस र वीर जी ॥ चंदन वाससुं नमरा श्राव्यां, खामा घाल्या शरीरजी ॥ धन० ॥४॥ चार महिना लगें जांजेरी, पीडा सही निसदीस जी॥ रह्या अडग ते मेरुतणी परे, नही आणी मन रीस जी ॥ध० ॥५॥ चोर चिलाइती साधु हुवो, तीन शब्द सुण्या कान जी ॥ रुधिर बा ससं कीडा आया, ध्यायो निर्मल ध्यान जी ॥ धन० ॥६॥ पांचमो परिसह ने अति नारी, सेवे मोहोठा निग्रंथ जी ॥ सत सतीयाने जिन जी नाख्यो, दूकर दोरो पंथ जी ॥ध०॥७॥ दुहा ॥ठो परिसह साधुने, वस्त्र मरयादा
SR No.010224
Book TitleJain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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