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वाजे लू दावाजालो जी ॥ वेलु नूनार अग्निज्यू परजले, दाजे पग सुकमालो जी ॥ ३० ॥२॥ ॥ वादल वर्षा वायुवं नही, पावमी न पेहेरे पा योजी ॥ माथे वस्त्र न धरे चालता, नहीं पटके जल कायो जी ॥३०॥३॥ मोटको जाणेअति घणो रातनो, नही सूवे अगयो जी ॥ उ ना दाण मात्र रहेवे नही, नही लेवे तन वायो जी॥ ज० ॥४॥ उष्ण परिसह उग्र ते मुनि सहे, करता उपविहारो जी ॥ गाढी गरमी रेला उतरे, नही करे खेद लिगारो जी ॥ ज०॥५॥ जष्ण परिसह अरणक मुनि सह्यो, वचन सुपी निज मायो जी ॥ बलती शिल्ला अग्नि जेमपरजले, दीयो संथारो ठायो जी ॥ उ०॥६॥ काल करीने हुवा देवता, पाम्या सुख अपारो जी॥ इम अनंता साधु उद्धरया, कहेतां नावे पारो जी ॥ उ०॥७॥ इति नष्ण परिसह॥४॥
दुहा ॥ डंस मंस चटका दीये, साधु सेवे समनाव ॥हणे नही त्रसजीवने, ओहितिरण रोमाव ॥१॥ अथ डंसमंस परिसह ॥५॥ .ढाल ५ मी ॥ ममता नही आणे देहीनी,