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________________ ह्योने, इण न्याय अजीवने रूपी अलपीदोन कहीजे, पुण्यनेरूपी किणन्यायकहीजे. ए पुण्य तोशुनकर्म, कर्मपुदगलठे पुदगलतेरूपीछे, इ गन्यायपुण्यनेरूपीकहीजे, पापनेरूपी किणन्या यकहीजे, पापतो अशुनकर्मठे, कमते गुदग ल, तेरूपी, इणन्यायपापनेरूपीकाहीजे, आ श्रबने अरूपी किणन्यायकहीजे, कृष्णादिक नावलेश्या अरूपीछे, इणन्याय पाश्रबने अरूपीकहीजे, मिथ्यत्वाश्रवने अरूपी किणन्या य कहीजे, मिथ्यादृष्टीने अरूपी कह्याने, इण न्याय मिथ्यात्वाश्रबने अरूपी कहीजे, अविर त्याश्रबने अरूपी किणन्याय कहीजे, अत्याग नाव ते अरूपीछे, इणन्यायें कहीजे. प्रमोदा श्रबने अरूपी किणन्याय कहीजे, अनचा हपणुं ते प्रमादाब, ते अपनबाडपणुं जी व, जीवते अरूपीछे, इण न्यायप्रमादाश्रबने अरूपी कहीजे. कपायाश्रबने अरूपी किण न्याय कहीजे, श्रीठाणांगठाणेदशमे जीवपरि णामीरा दशनेदामें कषायपरिणामीजीवकह्या धनेज्ञानदर्शनचारित्र परिणामीकह्या, ते ज्ञा
SR No.010224
Book TitleJain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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