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________________ नदर्शनचारित्र परिणामीजीवळे. तिमकषायपरि णामीपणजोवरे, ए जीवपरिणामीरानेदाने कषा यपरिणामीकह्या, माटेकषायपरिणामी, नेकपायाश्रवतेजीवडे, जीवतेअरूपीने, इणन्याय कपायाश्रवनेअरूपीकहीजे, योगाश्रबने अरू पी किएन्याय कहीजे, ए तीनुंही योगारो उठाण कर्मबलवीर्य पुरुषाकार पराक्रम अरूपी बे, इंणन्याय योगाश्रबनेअरूपीकहीजे, संबरने अरूपी किणन्याय कहीजे, अठारेपापस्थानकरो विरभणअरूपीकह्यो. इणन्याय संबरने अरू पीकहीजे, निर्जराने अरूपी किणन्यायकहीजे, कर्मतोंडवारो उठाण कर्मबलवीर्य पुरुषाकार प राक्रम अरूपीछे, इण न्याय निडराने अरूपी कहीजे, बंधनेरूपी किणन्यायें कहीजे, बंध तो शुला गुजकर्षने, कर्मतेपुदगल पुदगलतेरूपी बे, गन्याय बंधनेरूपीकहीजे, मोदने अरू. पो गन्याय कहीजे, समस्त कर्माने मूकावे ते तोजीवजने, तेनेमोक्षकहीजे, तेनेनिरवाणकहीजे, ते ने सिद्धनगवानकहीजे, तेतो अरूपी जे, इणन्याय मोदने अरूपी कहीजे, इति
SR No.010224
Book TitleJain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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