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________________ जे, नलानाव प्रवर्तीवीने कर्माने तोडीदूरकरे. देशयकी जीव उज्वलहुवेते जीवडे, हणन्यायें नि ऊरानेजीवकहीजे.बंधने अजीव किणन्याय कही जे, बंधतो शुनाशुनकर्म,कर्मते पुदगल पुद गलते अजीव, इणन्याय बंधने अजीवकहीजे, मोदानेजीव किणन्यायकहीजे, समस्त कर्मा. नेमकावेते मोद, तेतोजीवडे तेनेमोक्षकही जे, तेने निरघा कहीजे, तेने सिद्धनगवानक हीजे, सिद्धनगवानतो जीववे, इणन्याय मोदा ने जीवकहीजे. ए पांचमंजीव द्वार समाप्त. हिवेरठा रूपीश्ररूपी द्वारक-जीव अरू पी, अजीव रूपी अरूपीदोनुंब, पुण्यरूपी , पापरूपी, आवअरूपीने, संबरअरूपी बे, निर्जरामरूपीछे, बंधरूपी, मोहनरूपी ने, हिवेरनीअोलखणाकहे-जीवनेअरूपी कि न्यायकहीजे, उद्रव्यमांजीवनरूपीकरो, १ न्यायनीवने अरूपीकहीजे. अजीवने अरूपी रूपी किणन्यायकहीजे, धर्मास्ति अधर्मास्ति आकाशास्ति ने काल ए चार अजीवद्रव्याने अरूपीकह्याने, पुदगल अजीवद्रव्यने रूपीक
SR No.010224
Book TitleJain Dharm Gyan Prakashak Pustak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNana Dadaji Gund
PublisherNana Dadaji Gund
Publication Year
Total Pages211
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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