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________________ नाम भी ले दें तो वह पुरुष तो जाति में बदस्तूर बना रहने के लिये कभी भी अपना अपराध स्वीकार करने को तैयार नहीं होता। कुछ भी हो, जिस प्रकार दुध में से मक्खी निकाल कर माहर फेंकदी जाती है उसी तरह वह स्त्री तो फौरन ही जाति में से सर्दव के लिये निकाल दी जाती है । पुरुष मियां तो सिर्फ २-४ गेज जातिक बाहर रहते है । वह हजरत तो शीघ्र ही पंचों की श्राक्षानुसार किसी धर्माचार्य जी की व्यवस्था लिखा लाकर तथा उसके अनुसार एक दो उपवास करके या गौमूत्रादि पीकर अथवा कहीं नजदीक़ को तीर्थयात्रा करके और पंचों को कुछ तरावट माल खिलाकर पीछ मी जाति में श्राबेटते है और बदस्तूर अपना व्यवहार चलाने लगते है । लेकिन उस स्त्री का उद्धार करने क लिंय तरन तारन कहाने वाल पंच परमदेवरों के पास कोई नियम नहीं है। स्वार्थी पुरुष समाज ने अपने सुभीत के लिये सव कुछ नियम बना रखे है, लेकिन विचारी भवला समाज की तरफ तो वह अपनी फूटी प्रांख से भी नहीं देखना चाहता । वह तो केवल अपनी श्वानवत् नीच काम वासना की तृप्ति के समय ही उसके सामने हाथ जोड़ खड़ा रहने को संयार रहता है। अब वह पतिता कहीजानेवाली स्त्री जव कहीं भी रक्षा तथा उदर पालन का जरिया नहीं पाती है और न बिरादरी के लोग ही उसका उद्धार करने को तैयार होते हैं तो ऐसी दशा में नह अवश्य ही अधिकाधिक गिर जातो है, वेश्या बन जाती है तथा विधर्मियों के घरों में बैठ कर अपनी गौ रक्षक कुक्षि से गौ भक्षक विधी संताने पैदा करने लग जाती है । यही स्त्री अपने साथ दो चार को भोर भी ले जाती है और ज्यों २ उसको अवसर मिलता है त्यो त्यों वह अपना Fमुदाय और हम जोल बढ़ाती रहती है पेसी एक दो नहीं, सो दो सौ और हजार दो हज़ार नहीं, बलिक जास्त्रोन जीरे है और सब जानते हैं। सुसराल में तो इन प्रभा
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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