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________________ (७) हैं परन्तु यह पुरुष समाज इस पर भी संतुष्ट नहीं होता । यह इन देवियों को श्रादर्श से गिराने के लिये कई प्रकार के प्रलोभनों को साथ में लिये फिरता है। हा ! कहते हुए हृदय को बड़ा दुःख होता है कि इस पुरुष जातिने ही हमारे समाज मन्दिर को ग्राम सब तरह से व्यभिचार और अत्याचार को कुत्सित लीलामों का अड़ा बना रखा है। ऐसी हज़ारों नजारे देखी गई हैं कि लोग कई प्रकार के प्रलोभनदेकर विधवानों के साथ अपना अनुचित सम्बन्ध जोड़ कर उन के सतीत्व को नष्ट कर बैठते हैं। विचारी भोली भाली विधवाएं भी उनके जाल में फंस कर उन की प्रेमिका वन जाती है। जब संयोग से उन के गर्भ रह जाता है तो वे लोग अपने को बदनामो से बचाने के लिये पहले तो उस का गर्भ गिरवाने का कोशीश में रहते हैं और जहां तक हो सकता है दस बीस रुपया खच कर के उस का गर्भपात करवा ही देते हैं। यदि कभी २इस में वे सफल न हो सके तो दुसरो कोशीश उनकी यह रहती है कि वह विधवा स्त्री कहीं मेरा नाम नजेदे वरना जाति बाहर होना पड़ेगा। पंचों के बुलाकर पूछने पर कोई स्त्रियां तो उस पुरुष पर प्रायन्दा अपना तथा होने बाले बच्चे का भरण पोषण होते रहने का दाबा रखने के लिये अपना सच्चा हाल प्रकट कर देती है और कोई २ स्त्रियां इस क्रदर भजी मानुष होती हैं कि वह अपने प्रेमी को जाति दण्ड व लोकिक तिरस्कार स बचाने के लिये सारा अपराध अपने ही ऊपर लेकर उसका नाम प्रकट नहीं करती । पस वह पुरुष तो उस विधा के गर्भ धारण होते ही उससे अब कोस भर दर रहने लग जाता है और उसेस किसी किस्म के दुःख सुख की पूछताछका नाम भी नहीं लेता। या तो वह पुरुष दिन में दस दस मरतबा उसके घर उसके पांव के तलवे चाटने के लिये जाया करता था लेकिन अब तो वह उस गली की तरफ मुंह करके भो नहीं झांकता । स्त्रियां प्रगर सच्चाहाल प्रकट करके उस पुरुष का
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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