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________________ श्रमा है। यदि प्रत्येक प्रादमी उनका उपयोग न का सकंगा तो यह कहना पड़ेगा कि "अम्बामि कम्य द्रव्यम्य दामादो मंदिनीपतिः जिसका कोई म्वामी नहीं होता उमका म्वामी गजा होना है। आजकल हमारे यहाँ राजा है-अंग्रज़ लोग, तव सब विधवानों के स्वामी व ही हो जायेंगे। स्त्रियों को सम्पत्ति समझने वाले दानवों से हम पूछते हैं कि तुम लोग अपनी इन गन्दी कल्पनाओं मे अपनी मां बहिन और बेटियों को कितना नीचे गिरा देते हो? उनका कैसा अपमान करते हो, उनके सतीत्व पर केस आक्षेप करते हो. इसकी कल्पना करते ही आँखों में खून टपकने लगता है श्रोर जी चाहता है कि............ । कुछ लोगों का यह कहना है कि जिस प्रकार मनुष्य अनेक थालियों में भोजन कर सकता है लेकिन हमारी झूठी थालीमै दसग पुरुप भोजन नहीं करता, उसी प्रकार एक पुरुष अनेक स्त्रियों का सेवन कर सकता है, लेकिन अनेक पुरुष एक म्त्री का सेवन नहीं कर सकते, क्योंकि पुरुष भोजक है और म्त्री भोज्य है। यदि स्त्री को थाली मान लिया जाय तो भी विधवाविवाह का विरोध नहीं हाता। क्योंकि जिस प्रकार मांजने धोने के बाद थाली फिर काम में लाई जाती है और दुमा पुरुष के भी काम में आ सकती है, उसी प्रकार मासिक धर्म के बाद द्वितीय पुरुष के साथ मंत्री का सम्बन्ध होना अनुचित नहीं कहा जा सकता। दूसरी बात यह है कि स्त्री पुरुष का भोज्य भोजक सम्बन्ध नहीं है: यदि है तो दोनों ही भाजक और दोनों ही भाज्य है । सीधी बात यही है कि भोग के कार्य में दोनों को बन गई है । घर वालों से लेकर बाहर तक के सभी पुरुषों की कुदृष्टि उन पर रहती है । स० जा०प्र० ।
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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