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________________ अनेक भाई कहेंगे कि शास्त्रों में 'कन्यादान विवाहः' लिखा हुआ है । इस लिये विधवा का विवाह नहीं हो सकता। यदि कन्यादान विवाह का लक्षण माना जावं तब तो गंधर्व विवाह को विवाह ही न कहना चाहिये; क्योंकि उसमें स्त्री और पुरुष परस्पर एक दूसरे को स्वीकार करते है-कन्या का दान नहीं किया जाता । इमसे मालूम होता है कि शास्त्रों में विवाह के जो लक्षण मिलते हैं वे किसी समय की विवाह प्रथा के प्रदर्शकमात्र है। विवाह का व्यापक लक्षण है 'स्त्री पुरुष का एक दूसरे को स्वीकार करना । कन्या शब्द के ऊपर जब हम नज़र डालते हैं तब हमें इसमें और ही रहम्य दीखता है । कन्या शब्द का अर्थ 'भोग' अविवाहिता लड़की करते हैं। लेकिन कन्या शब्द का अर्थ पुत्री भी होता है। विवाहित हो जाने पर भी यह कहा जाता है कि अमुक पुरुष की कन्या है । विवाह में कन्यादान (पुत्रीदान) शब्द के प्रयोग करने का मतलब यह है कि कन्या दान करने का सबसे बड़ा अधिकार पिता का है। पिता को अधिकार है कि वह कमारी कन्या के समान विधवा का भी दान करें। दृमर्ग बात यह है कि 'कन्या शब्द का अर्थ "विवाह याग्य स्त्री है चाहं वह कमारी हो या विधवा । सैकड़ों वर्षों से भारतवर्ष में कुमारी विवाह का ही विशेष चलन रहा है इस लिये कुमारी और कन्या दोना ही शब्द पर्यायवाची बन गये हैं। देखिये कोषकार ने 'कन्या शब्द का अर्थ 'स्त्री सामान्य' बताया है।
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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