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( २२६ ) प्राचीन ज़माने में क्या लोग अपनी स्त्री का मरजाना अच्छा समझते थे ? यदि नहीं तो विधुर होना भी बुरा कहलाया। तब तो विधुर विवाह का भी अभाव सिद्ध हो जाना चाहिये।
प्राचीन ज़माने में विधवा को अच्छा नहीं समझते थे, इससे विधवाविवाह का अभाव सिद्ध नहीं होता बल्कि सद्भाव सिद्ध होता है । विधवा होना अच्छा नहीं था, इसलिये विधवा विवाहके द्वारा उस सधवा बनाते थे। क्योंकि जो चीज़ अच्छी नहीं होती उसे हटाने की कोशिश होती है । निराग अगर रोगी हो जाय तो उसे फिर निरांग बनाने की कोशिश की जाती है। इसी प्रकार सधवा अगर विधवा हो जाय तो उसे फिर सधवा बनाने की कोशिश की जाती थी । इस तरह विद्यानन्द का तर्क मी विधवा-विवाह का समर्थन ही करता है।
इस प्रश्न में कुछ प्राक्षेप ऐस भा है जो कि पहिले भी किये जा चुके है और जिनका उत्तर भी विस्तार से दिया जा चुका है। इसलिये अब उनको पुनरुक्ति नहीं की जाती।
इकतीसवाँ प्रश्न ।
'सामाजिक नियम या व्यवहार धर्म बदल सकते हैं या नहीं इसके उत्तर में हमने कहा था कि बदल सकते हैं, क्योंकि व्यवहार धर्म साधक है। जिस कार्य से हमें निश्चय धर्म की प्राप्ति होगी वही कार्य व्यवहार धर्म कहलायगा । प्रत्येक व्यक्ति की योग्यता और प्रत्येक समय की परिस्थिति एकली नहीं होती। इसलिये सदा और सब के लिये एकसा व्यवहार धर्म नहीं हो सकता । अनेक प्रकार के मूलगुण, कभी चार संयम, कभी पांच संयम, किसी को कमण्डलु रखना,