________________
( २१३ )
इसके बाद प्रथम विवाह के समय में दिया हुआ धन वापिस लेकर दूसरी शादी के लिये आज्ञा देदें ।
पाठक देखे कि यहाँ 'प्रमुञ्चेयुः' क्रिया है । इसका अर्थ 'छोड़ दें' ऐसा होता है। पति के पास भेज दें ऐसा अर्थ नहीं होता | पति के पास से पिता के पास, या पिता के पास से पति के पास आने जाने में मुञ्च या छोड़ देने का व्यवहार नहीं होता | इसलिये सम्बन्ध विच्छेद के लिये ही इस शब्द का व्यवहार हुआ है ।
ब्राह्मणमधीयानं दश वर्षाण्यप्रजाता, द्वादश प्रजाता राजपुरुषमायुः क्षयादाकाङ्क्षत ||३०|| सवर्णतश्च प्रजाता नाप वादं लभेत ।। ३१ ।।
पढ़ने के लिये विदेश गये ब्राह्मण की सन्तानहीन स्त्री दशवर्ष तक, संतान वाली १२ वर्ष तक और राजकार्यप्रवासी की जीवनपर्यन्त प्रतीक्षा करे । हाँ, अगर किसी समान वर्ण से वह गर्भवती होजाय तो वह निन्दनीय नहीं है । यहाँ पर प्रतीक्षा करने के बाद पति के पास जाने की
亦
पुरुष
बात नहीं लग सकती । जब ऐसी हालत में परपुरुष से गर्भवती होजाने की बात भी निन्दनीय नहीं है तब उनके पुनर्विवाह की बात का तो कहना ही क्या है।
कुटुम्बडिलांपे व सुखावस्थैविमुक्ता यथेष्ट विन्देत जीवितार्थम् ।। ३२ ।। कुटुम्बकी सम्पत्ति नम्र होने पर या उनके द्वारा छोड़े जाने पर जीवन निर्वाह के लिये इच्छानुसार विवाह करे ।
श्रीलालजी विन्देत का अर्थ करते हैं पति के पास जाये । हम सिद्धकर चुके हैं कि विन्देत का अर्थ विवाह करें' है । साथ ही इस ग्रन्थ का सारा प्रकरण ही स्त्री पुनर्विवाह का है यह बात पहिले उद्धरणों से भी सिद्ध है । 'ग्रंथे" शब्द से भी