SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( १८६) से विवाही गई। विवाह के योग्य उमर हो जाने पर इच्छित वर के न मिलने से इन्हें वाट देखते रुकना पड़ा। लहासन्दरी-हनुमान के साथ इसने घोर युद्ध किया। पापुगण के ५३ पर्व में इसका चरित्र पढ़ने से इसकी प्रोदना का पता लगता है। पुराणों में ऐसे सैकड़ी उल्लेख मिलते हैं जिनसे यवती. विवाह का पूर्ण समर्थन हाता है। कन्याएँ कोई प्रतिज्ञा कर लनी या किमी खास पुरुष को चुन लेती जिसके कारण उन्हें वर्षों बाट दशनी पड़ती थी । पंसी अवस्था में १२ वर्ष की उमर का नियम नहीं हो सकता । कन्याओं के जैसे वर्णन मिलते हैं उनसे भी उनके योवन और परिपक्वबुद्धिता का परिचय मिलता है जा १२ वर्ष की उमर में असम्भव है। इन उदाहरणों से यह बात भी सिद्ध हो जाती है कि पुगन समय में कन्या को स्वतन्त्रता थो और उन्हें पति पसंद करने का अधिकार था । इस स्वतन्त्रता मोर पसन्दगी का विगंध करने वाले शास्त्रविरोधी और धर्मलादी हैं। भाक्षेप ( घ)-यदि ब्रह्मचर्य की इतनी हिमायत करमा है ना विधवा के खिये ब्रह्मचर्य का ही विधान क्यों नहीं बनाया जाता! ___ ममाधान-चाहे कुमारियाँ हो या विधवाएं हो हम दानों के लिय बलाद् ब्रह्मचर्य मोर बसाविवाह बुरा समझते हैं। जो विधवाएँ ब्रह्मचर्य से रहना चाहे, हे । जो विवाह करना चाहें, विवाह करें। कुमारियों के लिये भी हमारा यही कहना हे । कुमारी और विधवा जब तक बह्मचर्य से रहेंगी नबनक पुण्यबन्ध होगा। माक्षेप ( 3 )-जो लोग यह कहते हैं कि जितना ब्रह्मचर्य पल सके उतना ही अच्छा है व ब्रह्मचर्य का अर्थ हो
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy