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________________ ( १६५ ) आक्षेप ( स्व )-मुसलमान लोग तो इसलिये बढ़ रहे हैं कि उन्हें नरक जाना है। और इस निकृष्ट काल में नरक जाने वालों की अधिकता होगी। ( श्रीलाल ) ममाधान-श्राप कह चुके हैं कि जैनियों में पापी हो गये इसलिये संख्या घटी। परन्तु इस वनव्य से तो यह मालूम होता है कि जेनियों की संख्या पाप से बढ़ना चाहिये जिममें नरकगामी श्रादमी मिल सके। इस नरक के दन ने यह भी स्वीकार किया है कि "नीच काम करने से नीच की जितना पाप लगता है उमस कई गुणा पाप उच्च को लगता है", अर्थात् जैनियों को ज्यादा पाप लगता है। इस सिद्धान्त के अनुसार भी जेनियों की संख्या बढ़ना चाहिये क्योंकि इस समाज में पैदा होने से खूब पाप लगेगा और नरक जल्दी भरेगा। एक तरफ पाप म संख्या की घटो बसलाना और दूसरी तरफ़ पाप म संख्या की वृद्धि बतलाना विचित्र पागस्तपन हे। आक्षेप (ग)-विधवाविवाह श्रादि से, प्लंग हैजा प्रादि से समाज का सफावट हो जायगा । ( श्रीलाल) समाधान-विधवाविवाह से सफाचट होगा इसका उत्तर तो यारोप अमेरिका आदि को परिस्थिति देगी। परन्तु विधवाविवाह न होने से जैनसमाज सफाचट हो रही है यह तो प्रगट ही है। आक्षेप (घ)- समाज न रहने का डर वृथा है। जैनधर्म तो पंचम काल के अन्त तक रहेगा। (श्रीलाल) समाधान--विधवाविवाह के न होने से संख्या घट रही है । जैनियों की जिन जानियों में पुनर्विवाह है उनमें संख्या नहीं घट रही है। अगर पुनर्विवाह का रिवाज चालू न होगा तो संख्या नष्ट हो जायगी । परन्तु जैनधर्म का इनना हास तो
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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