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कंवली के नाम में ही क्यों न लिखा गया हो, उसे कचरे में डाल देना चाहिये । धृतों की धूनता का छिपाना घोर मिथ्यात्व का प्रचार करना है । जैन सिद्धान्तों के विरुद्ध जाने पर भी ऐसे शास्त्रों का मानना घोर मिथ्यावी बनजाना है। गरु परम्पग है कहाँ ? श्वेताम्बर कहने है कि हमारे मृत्र भगवान महावीर क. कहं हुए है । दिगम्बर कहते हैं कि कुन्द कुन्द में लंकर भट्टारको ओर अन्य अनेक पोगापन्थियों तक के बनाये हुए ग्रन्य वीरभगवान की बाणी हैं । अब कहिये ! किसकी गरु परम्पग ठीक है ? यो ना मभी अपने बाप के गीत गाते हे परन्त इतने में ही सत्यानत्य का निर्णय नहीं हो जाता । यहाँ तो गरुपरम्पग के नाम पर मक्खी हाँकने बैठा न रहना पड़ेगा। ममम्न माहित्य की माक्षी लेकर अपनी बुद्धि से जैनधर्म के मूल सिद्धान्न खोजने पड़ेंगे और उन्हा सिद्धान्तों का कमौटी बनाकर म्वर्ण और पीतल की परीक्षा करना पड़ेगी, और धृतों तथा पक्षपातियों का भण्डाफोड करना पड़ेगा। यह कहना कि "प्राचीन लेखकों में पक्षपानी धृत नही हुए” बिलकुल धोखेबाज़ी या अज्ञानता है। माना कि बहुत से लेखकों ने श्रापेक्षिक कथन किया है जैसाकि इमी प्रकरण में ऊपर कहा जा चुका है परन्तु थोड़े बहुन निरे पक्ष. पाती, उन्मत्रवादी और कुलजाति मद के प्रचारक घोर मिथ्यान्वी भी हुए हैं। अगर किसी लेखक ने यह लिखा हो कि "पुरुष तो एक साथ हज़ागे स्त्रियाँ रखने पर भी अणुव्रती है परन्तु स्त्री, एक पति के मर जाने पर भी दूसग पनि र ख तो घोर व्यभिचारिणी है उसको पुनर्विवाह का अधिकार ही नहीं है" तो क्या पक्षपान न कहलायगा ? पक्षपात के क्या सीग होते हैं ? यह पुरुषत्व की उन्मत्तता का तांडव नहीं तो क्या है ? पुरुषों ने शद्र पुरुषों को भी कुचला है। इससे ना