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( १०५ ) वाले बतलायें कि आज कितनी स्त्रियाँ अग्नि में बैठकर अपने सतीत्व की परीक्षा दे सकती है? सीता और राजुल आज तो असाधारण हैं ही, परन्त उस ज़माने में भी प्रसाधारण थीं।
आक्षेपकने ज्योति प्रसाद जी आदि का उदाहरण देकर सिर किया है कि विधुर भी ब्रह्मचर्य से रहते हैं । इस सिद्ध करने की धुन में आप अपने असली पक्ष को खो बैठे । अगर ज्योतिःप्रसादजी श्रादि विधुगें के रहने पर भी फ़ीसदी ६५ विधुर अपने पुनर्विवाह की कोशिश करते हैं अर्थात निदोष वैधुयं का पालन नहीं कर पातं तो शुद्ध वैधव्य पालन करने वाली अनेक विधवाओं के रहने पर भी फ़ी सदी ५ विधवाएँ शुद्ध वैधव्य पालन नहीं कर पातीं।
माक्षेप (घ )-विधुगे के समान विधवाओं के विवाह की प्राशा कौन दे ? क्या हम छद्मस्थ लोग ? शास्त्रों में बहुविवाह का उल्लेख पाया जाना हे । शास्त्रका पुरुष होन स पक्षपाती नहीं कह जासकते, क्योकि न्याय और सिद्धान्त की रचनाएँ गुरुपरम्पग से हैं। यदि उन्हें पुरुषत्व का अभिमान होता तो शुद्रों का पूजनप्रक्षाल, महाव्रत ग्रहण आदि से बंचित क्या रखते ? यदि ब्राह्मणत्यका पक्षपात बताया जाय तो उनने हीना. बारी ब्राह्मण को शुद्रों से भी बुग क्यों कहा ? इसलिय पक्ष. पात का इल्ज़ाम लगाना पशुता और दमनीय अविचारता है।
(विद्यानन्द) समाधान--हमारे उत्तर में हम विषयका एक अक्षर भी नहीं है और न घुमा फिगकर हमने किसी पर पक्षपात का इल्ज़ाम लगाया है। यह हरिण का साते शेर को जगाना है ।
प्रारम्भ में हम यह कह देना चाहते हैं कि मादोपकन जैन शास्त्रों की जैसी आशाएँ समझी हैं वैसी नहीं हैं । जैन शास्त्र तो पूर्ण ब्रह्मचर्य की प्रामा देने हैं, लेकिन जो लोग पूर्ण