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कठिन लिखा है फिर भी मायाचार की तुलना की है। ये परस्पर विरुद्ध बातें कैसी ? मन का हाल तो मन:पर्ययज्ञानी ही जान सकते हैं । (विद्यानन्द )
समाधान- मन:पर्ययज्ञानी को मन की बातका प्रत्यक्ष होता है लेकिन परोक्ष शप्ति तो श्रुतज्ञान से भी हो सकती है। वचन, श्राचरण तथा मुखाकृति श्रादि से मानसिक भावों का अनुमान किया जाता है | श्रक्षेपकने स्वयं लिखा है कि "किस. का मायाचार किस समय अधिक है सो भगवान ही जानें. परन्तु वेश्या से अधिक कभी कुशीला का मायाचार युक्ति प्रमाण से सिद्ध नहीं होता ।" क्या यह वाक्य लिखते समय आक्षेपक को मन:पर्ययज्ञान था ? यदि नहीं तो भगवान के ज्ञान की बात उनने कैसे जानली ?
आक्षेप (घ ) - कुशीला, पतिव्रता के वेष में पाप नहीं करती । जहाँ पति पानिव्रत होगा वहाँ तो कुशीलभाव हो ही नही सकते । ( विद्यानन्द )
समाधान- श्रक्षेपक पतिव्रता के वेष और पातिव्रत के अन्तर को भी न समझ सके । वेश्याएँ भी सोता सावित्री आदि का पार्ट लेकर पतिव्रता का वेष धारण करती हैं, परन्तु क्या वे इसी से पतिव्रता होती हैं ? क्या कुशीलाओं का कोई जुदा वेष होता है ?
आक्षेप (ङ) - कुशीला हज़ार गुप्त पाप रती हैं, परन्तु जिन मार्ग को दूषित नहीं करती । इसलिये विवाहित विधवा और वेश्या से कुशीला की कक्षा ऊँची कही गई है। ( विद्यानन्द ) समाधान- विवाहितविधवा और वेश्यासे कुशीला की कक्षा किस शास्त्र में ऊँची कही गई है ? ज़रा प्रमाण दीजिये !