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________________ ( ८३ ) के कारण अधिकार छीनना अन्याय है । अगर यह नियम बनाया जाय कि जो इतना विद्वान हो उसे इतने विवाह करने का अधिकार है और जो विद्वान नहीं है उसे विवाह का अधिकार नहीं है, तो क्या यह ठीक होगा ? दूसरी बात यह है कि जिस विषय का अधिकार है उसी विषय की समता, विषमता, योग्यता, अयोग्यता का विचार करना चाहिये । किसी के पैर में चोट आ गई है तो बहुत से बहुत वह जूता नहीं पहिनेगा, परन्तु वह कपड़े भी न पहिने, यह कहाँ का न्याय है ? किसी भी अधिकार के विषय में प्राय चार बातों का विचार किया जाता है । योग्यता, श्रावश्यक्ता, सामाजिक लाभ, स्वार्थत्याग | पुनर्विवाह के विषय में भी हम इन्हीं बातों पर विचार करेंगे । स्त्रियों में पुनर्विवाह की योग्यता तो है ही, क्योंकि पुनर्विवाह से भी वे सन्तान पैदा कर सकती हैं। संभोगशक्ति, रजोधर्म तथा गार्हस्थ्यजीवन के अन्य कर्तव्य करने की क्षमता उन में पाई जाती है । श्रावश्यक्ता भी हैं, क्योंकि विधवा हो जाने पर भी उनकी कामवासना जाग्रत रहती है, जिसके सीमित करने के लिये विवाह करने की ज़रूरत है । इसी तरह सन्तान की इच्छा भी रहती हैं, जिसके लिये विवाह करना चाहिये । वैधव्यजीवन बहुत पराश्रित, आर्थिक कष्ट, शोक, चिन्ता और संक्लेशमय तथा निगधिकार होता है, इसलिये भी उन को पुनर्विवाह की श्रावश्यक्ता है । कुछ इनीगिनी विधवाओं को छोड़ कर बाकी विधवाओं का जीवन समाज के लिये भार सरीखा होता है । वैधव्यजीवन के भीतर कैद हो जाने से बहुत से पुरुषों को स्त्रियाँ नहीं मिलतीं । इसलिये उनका जीवन दुःखमय या पतित हो जाता है। समाज की संख्या घटती है । विधवाविवाह से ये समस्याएं अधिक श्रंशो में हल हो जाती है: इसलिये विधवाविवाद से सामाजिक लाभ
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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