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________________ ( ७२ ) सुखानुभव होना है। इसलिये उनमें से किसी एक को भोज्य या किसी एक को भोजक नहीं कह सकते । असल में दोनों ही भोजक हैं। अगर स्त्री को भोजक न माना जायगा तो स्त्रियों के लिये कुशील नाम का पाप ही नहीं रहेगा; क्योंकि कुशील करने वाला (भोजक) ना पुरुष है न कि स्त्री। इस लिये स्त्री का क्या दोष है ? हिंसा करने वाला हिंसक कहलाता है न कि जिसकी हिंसा की जाय वह । चोरी करने वाला चोर कहलाता है न कि जिसकी चोरी की जाय वह । इसलिये जो व्यभिचार करने वाला होगा वही व्यभिचारी कहलायगा नकि जिसके साथ व्यभिचार किया जाय वह । इसलिये स्त्रियाँ सैकड़ो पुरुषों के साथ सम्भोग करने पर भी व्यभिचार पाप करने वाली न कहलायँगी, क्योंकि वे भोजक ( भोग करन वाली) नहीं हैं। अगर स्त्रियों को व्यभिचार का दोष लगता है तो कहना चाहिये कि उनमें भी भोक्तृत्व है। भोक्तृत्व के लक्षण पर विचार करने से भी स्त्रियों में भोक्तृत्व मानना पड़ता है। दूसरी वस्तु की ताकत को ग्रहण करने की शक्ति को भोक्तृत्व कहते हैं (पर द्रव्यवीर्यादान. सामध्य भोक्तृत्वलक्षणम्-राजवार्तिक)। स्त्री पुरुष के भागम हमें विचारना चाहिये कि कौन किसकी ताकत ग्रहण करता है और कौन अपनी शक्तियों को ज्यादः बर्बाद करता है। विचार करते ही हमें मालूम होगा कि मोक्तृत्व स्त्री में है न कि पुरुष में, क्योंकि सम्भोग कार्य में पुरुष की ज्यादः शक्ति नष्ट होती है। दूसरी बात यह है कि स्त्रीके रजको पुरुष ग्रहण नहीं कर पाता बल्कि पुरुष के वीर्य को स्त्री ग्रहण कर लेती है । राजवार्तिक के लक्षणानुसार, ग्रहण करना ही भोक्तृत्व है। ___ स्त्रोको जूंठी थालीके समान बतलाकर भोज्य ठहराना अनुचित है, क्योंकि पुरुष को भी गन्ने के समान ठहरा कर
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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