SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जब विसंवादादि सिद्ध हो, नब वह धर्मविरुद्ध सिद्ध हो । खैर नाममात्र के आक्षेपों का उत्तर देना भी हम उचित समझते हैं। आक्षेप ( क )-गजुल आदि की तपश्चर्याओं के दृष्टान्त शास्त्रों में पाये जाते हैं। अगर उन्हें काई विवाह का उपदेश देता तो उनकी उन्नति में सन्दह था। (विद्यानन्द) __ ममाधान-गजुल आदि के ममान बाल ब्रह्मचारिणी ब्राह्मीदेवी, सुन्दरी देवी, नीलीवाई आदि के दृशान्त भी तो शास्त्रों में पाये जाते हैं। इसलिये क्या यह नहीं कहा जासकता कि अगर कुमारीविवाह का उपदेश होना तो ब्राह्मी श्रादि की तरक्की केसे होती? अगर कुमागीविवाह के उपदेश रहने पर भी बालब्रह्मचारिणी मिल सकती हैं तो पुनर्विवाह का उपदेश रहने पर भी वैधव्य-दीक्षा लेने वाली और आर्यिका बन कर घोर तपश्चर्या करने वाली क्यों न मिलेंगी? आक्षेपक को गजुलदेवी की कथाका पूरा पता ही नहीं है। जैनियों का बच्चा बच्चा जानता है कि नेमिनाथके दीक्षा लेने पर राजुल के माता, पिता, सखियाँ तथा अन्य कुटुम्बियों ने उन्हें किमी दूसरे गजकुमार के साथ विवाह कर लेने को ग्वूच ही समझाया था। फिर भी उनन विवाह न किया । प्राक्षपक को समझना चाहिये कि गजुल सरीखी दृढ़मनस्विनी देवियाँ किसी के उपदेश अनुपदेश की पर्वाह नहीं करतीं । अगर उन्हें विवाह करना होता तो सब लोग रोकते रहते, फिर भी वे विवाह कर लेती। और उन्हें विवाह नहीं करना था तो सब लोग आग्रह करते रहे फिर भी उनने किसी के कहने की पर्वाह नहीं की। आक्षेप (ख)-पंडित लोग श्रेष्ठमार्ग का उपदेश देते हैं, इमलिये विसंवादी नहीं हैं । जबरन व्यभिचार की शिक्षा देने वाले कुछ अपडेट लीडर्म विसंवादी हैं । (विद्यानन्द)
SR No.010223
Book TitleJain Dharm aur Vidhva Vivaha 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSavyasachi
PublisherJain Bal Vidhva Sahayak Sabha Delhi
Publication Year
Total Pages398
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy