________________
कैसे मृचिन हई ? अगा कन्या शब्द का अर्थ कुमारी रक्खा जावे तब तो भार्याहरण की अपेक्षा कन्याहरण में कामवासना कम ही मालूम होती है।
असली बात तो यह है कि साहसगति विद्याधर दो पुत्रों की माना हो जाने पर भी मुताग को प्रौढ़ा नहीं मानता था । उसको दृधिमें उम्म समय भी वह परम सुन्दरी थी। उस में विवाह योग्य स्त्री के सब गुण मौजुद थे । इसीलिये उसने सुनारा को कन्या कहा। सुनाग में इस समय भी विवाहयोग्य स्त्री के समान सौंदर्यादि थे, इसलिये कविने उसे कन्या कहला कर यह बात और भी साफ़ करदी है कि विवाहयोग्य स्त्रीको कन्या कहते हैं । अगर कवि को यह अर्थ अभिमत न होता तो इस जगह वह 'बाला शब्द का प्रयोग करता जिसम माहस. गति की कामातुरता का चित्र और अधिक खिल जाता।।
खैर, ज़रा व्याकरण की दृष्टिसे भी हमें कन्या शब्द पर विचार करना है । व्याकरण में पुल्लिंग शब्दों को स्त्रीलिंग बनाने के कई तरीके है। कहीं डीप, कहीं टीप, कहीं इन ( हिंदी में ) श्रादि प्रत्यय लगाये जाते हैं तो कहीं शब्दोंका रूप बिलकुल बदल जाता है। जैसे पुत्र पुत्री श्रादि शब्दों में प्रत्यय लगाये जाते हैं जयकि माता पिता, भाई बहिन में शब्द ही बदल दिया जाता है। भाई और बहिन दोनों शब्दों का एक अर्थ है। अन्तर इतना है कि भाई शब्द से पुरुष जानीय का बोध होता है जबकि बहिन शब्द से स्त्री जातीय का। इसी तरह वर और कन्या शब्द हैं। दोनों का अर्थ एक हो है; अन्नर इतना ही है कि एक से पुरुष का बोध होता हे दूसरे से स्त्री का । अपने विवाह के समय प्रत्येक पुरुष वर कहा जाता है, चाहे उस का पहिला विवाह हो, चाहे दूसरा।ऐसा नहीं है कि पहिले विवाह के समय 'वर' कहा जाय और दूसरे विवाह के समय वर न