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अजीव तत्व-पुद्गल द्रव्य / 93
है। उसी तरह यूरेनियम से प्लेटिनम और शीशा आदि बनाये गए हैं। यह सब मूल तत्त्वों के एक होने पर ही संभव हो पाया है। अन्यथा एक पदार्थ से दूसरे पदार्थ की उत्पत्ति असंभव थी। अतः आज के वैज्ञानिक युग में भिन्न जातीय परमाणुओं की चर्चा कल्पना मात्र है।
पुद्गल के पर्याय शब्द, बंध, सूक्ष्मता, स्थूलता, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप और उद्योत-ये सब पुद्गल के पर्याय हैं।
शब्द-ध्वनि रूप परिणाम को शब्द कहते हैं। जैन दर्शन में शब्द को पुद्गल की पर्याय कहा गया है । वैशेषिक शब्द को आकाश का गुण बताकर उसे आकाश की तरह
अमूर्त मानते हैं, किंतु शब्द आकाश का गुण नहीं हो सकता, क्योंकि यह मूर्त इंद्रियों का विषय है। यदि यह आकाश का गुण होता, तो आकाश की तरह व्यापक और अमूर्त होने से किसी भी इंद्रिय का विषय नहीं बन पाता। शब्द दीवार आदि प्रतिबंधक कारणों के आने पर अवरुद्ध हो जाते हैं। शब्द की तीव्र आवाज से कान के पर्दे तक फट जाते हैं तथा तीव्र शब्द के आगे सक्ष्म शब्द दब भी जाते हैं। इन कारणों से शब्द की पौदगलिकता सिद्ध होती है। आधुनिक विज्ञान ने तो टेप.रेडियो, टेलिफोन आदि संचार माध्यमों से शब्दों का संग्रह कर यंत्रों द्वारा उसकी गति को घटा-बढ़ाकर तथा एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुंचाकर शब्द को भौतिक या पौद्गलिक मानने का मार्ग और सरल कर दिया है। अतः यह अमूर्तिक नहीं हो सकता। यह दो प्रकार का होता है भाषात्मक और अभाषात्मक।
अर्थ-प्रतिपादक वाणी को भाषात्मक शब्द कहते हैं। यह अक्षरात्मक और अनाक्षरात्मक के भेद से दो प्रकार का होता है। संस्कृत, हिंदी आदि विविध भाषाएं अक्षरात्मक शब्द हैं तथा दो इंद्रियादि पशु-पक्षियों की भाषा अनाक्षरात्मक भाषा कहलाती है। जिह्वा, तालु, ओष्ठ, कण्ठ आदि के प्रयोग से उत्पन्न होने के कारण यह प्रायोगिक कहलाता है। अभाषात्मक शब्द भी प्रायोगिक और नैसर्गिक के भेद से दो प्रकार का होता है।
पुरुष प्रयत्न से उत्पन्न तत, वितत, घन, और शौषिर रूप प्रायोगिक शब्द चार प्रकार
का है।
तत-तबला, मृदंग, भेरी आदि में चमड़े आदि के तनाव से उत्पन्न शब्द । वितत-तार के तनाव के कारण वीणा,सितार आदि से उत्पन्न शब्द । घन-घंटा,घड़ियाल आदि के टकराव से समुत्पन्न शब्द । शौषिर-शंख.बांसुरी आदि से निकलने वाला शब्द । नैसर्गिक-मेघ-गर्जना आदि से उत्पन्न होने वाला शब्द वैनसिक/नैसर्गिक हैं क्योंकि
1. द्र. स. 16 2.सर्वा सि., पृ. 224-25