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68 / जैन धर्म और दर्शन
कुछ व्यक्तियों का कहना है कि चेतना, जीव का लक्षण न होकर शरीर का लक्षण है, लेकिन यह ठीक नही है। यदि चेतना शरीर का लक्षण है तो शरीर को सदा चेतन रहना चाहिए क्योंकि लक्षण त्रैकालिक होता है। लेकिन देखा जाता है कि मृतक का शरीर चेतना रहित हो जाता है। अत चेतना शरीर का लक्षण नही हो सकता। दूसरी बात, यदि चेतना शरीर का लक्षण है तो बडे और स्थल शरीरों में चेतना अधिक होनी चाहिए तथा दुबले-पतले शरीर में चेतना की मात्रा भी अल्प होनी चाहिए तथा उसमें ज्ञान भी अल्प होना चाहिए कितु ऐसा देखा नही जाता। प्राय देखा जाता है कि पहलवानी शरीर धारी भी अल्पज्ञानी होता है तथा दुबले-पतले शरीर धारण करने वाले साधु-सतों और विद्वानों में अधिक ज्ञान पाया जाता है। इसी तरह हाथी, ऊट, घोडा, बैल आदि पशुओं की अपेक्षा मनुष्य का शरीर छोटा होने पर भी उनकी अपेक्षा मनुष्य में ज्ञान अधिक होता है। अत चेतना को शरीर का लक्षण नही माना जा सकता। यह तो शरीर से भिन्न जीव अथवा आत्मा का लक्षण है।
दूसरी बात यह है कि पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश रूप पचभूत तो जड हैं। चैतन्य रहित होने से इनसे जीव की उत्पत्ति कैसे हो सकती है। यदि कहा जाए कि महुआ, गुड, पानी आदि में मद्य शक्ति, दिखाई नही पडती, कितु परस्पर सयोगों को प्राप्त होने पर उनमें मद्य शक्ति उत्पन्न होती है तथा कुछ काल तक रहने पर विनाश की सामग्री प्राप्त होने पर विनष्ट हो जाती है। उसी प्रकार भूतो के सयोग से उत्पन चैतन्य भी कारण सामग्री प्राप्त होने पर विनष्ट हो जाती है। यह उदाहरण भी अनुपयुक्त है क्योंकि महुआ (घाव के फूल) गुड आदि पदार्थों में सयोग से पूर्व भी मादक शक्ति पाई जाती है। सयोग से तो केवल उनकी शक्ति का उद्दीपन होता है। इस प्रकार क्या तथाकथित भूतों में चेतना का अस्तित्व विद्यमान है ? यदि है तो जडवाद की कोई स्थिति ही नही रहती। फिर तो चेतना शाश्वत हो गई। जहा भूत है, वहा चेतना है। यदि चेतना सायोगिक ही है तो मद्य शक्ति का उदाहरण अवास्तविक है, क्योंकि मद्य के उपादान में मादकता प्रत्यक्ष है कितु भूतों में चैतन्य नही।
इसके बावजूद यदि कुछ क्षण के लिए मान ले कि पचभूतों के सयोजन से चैतन्य उत्पन्न होता है.तो उसका समीकरण क्या है? क्या उस समीकरण के आधार पर आज तक किसी ने चैतन्य की उत्पत्ति करके बताई है। यदि किसी ने नही बताई तो पचभूतों के सयोग से चैतन्य की उत्पत्ति होती है यह बात ही आधारहीन होने से अप्रमाणिक है।
___ आधुनिक वैज्ञानिक सर्व वस्तुओं की उत्पत्ति मात्र जड पदार्थो से मानते हैं। वे अपने विरोधी समागम अथवा गणात्मक परिवर्तन के सिद्धात के आधार पर कहते हैं पदार्थों की तरह चैतन्य भी पदार्थो के सयोग से ही बना है। परतु वे भी इसका अभी तक कोई समीकरण नही खोज सके हैं। यदि वैसा कोई समीकरण वैज्ञानिकों की दृष्टि में हो तो भी वे आज तक चैतन्य की उत्पत्ति करके नही बता सके हैं। चैतन्य का निर्माण तो दूर जीवित आँख, कान, नाक, हाथ, पैर आदि शारीरिक अवयवों के निर्माण में भी अभी तक वे सफल नही हो सके हैं। उनके द्वारा बनाई हुई सर्व वस्तुए जड ही दिखाई पड़ती हैं और वे जीवित वस्तुओं से स्पष्टतया भिन्न प्रतीत होती हैं। इसी तरह मृत्यु के उपरात शरीर निश्चेष्ट