________________
26 / जैन धर्म और दर्शन
जाने से ही इन्हें कल्पवृक्ष कहा जाता था) उस समय न कोई समाज व्यवस्था थी न ही पारिवारिक संबंध | माता-पिता युगल पुत्र-पुत्री की जन्म देकर दिवंगत हो जाते थे । पुराणकारों ने उक्त व्यवस्था को भोग- भूमि व्यवस्था कहा है। धीरे-धीरे उक्त व्यवस्था में परिवर्तन हुआ और उस युग का आरंभ हुआ जिसे पुराणकारों ने कर्मभूमि कहा है। इसे हम आधुनिक सभ्यता का प्रारंभ भी कह सकते हैं। कल्पवृक्षों से फल प्राप्ति में कमी आने लगी । फलतः लोग एक-दूसरे से झगड़ने लगे। शीत तुषारादि की बाधाएं सताने लगीं । जंगली पशुओं का आतंक बढ़ने लगा। उस समय क्रमशः 14 कुलकर हुए, जिन्होंने तत्कालीन समस्याओं का समाधान कर समाज को नई व्यवस्था दी । जैन परंपरा में कुलकरों का वही स्थान है जो कि वैदिक परंपरा में मनुओं का । मनुओं की संख्या भी चौदह बतायी गयी है। कुलकरों ने लोगों को हिंसक पशुओं से रक्षा का उपाय बताया। भूमि / वृक्षों की वैयक्तिक स्वामित्व की सीमाएं निर्धारित कीं। हाथी, घोड़ा आदि वन्य पशुओं का पालन कर उन्हें वाहन के उपयोग में लाना सिखाया। बाल-बच्चों का लालन-पालन एवं उनके नामकरणादि का उपदेश दिया । शीत- तुषारादि से अपनी रक्षा करना सिखाया । नदियों को नौकाओं द्वारा पार करना, पहाड़ों पर सीढ़ियां बनाकर चढ़ना, वर्षा से छत्रादिक धारण कर अपनी रक्षा करना सिखाया और अंत में कृषि द्वारा अनाज उत्पन्न करने की कला सिखाई । जिसके पश्चात् वाणिज्य, शिल्प आदि वे सब कलाएं व उद्योग-धंधे हुए जिनके कारण यह भूमि कर्मभूमि कहलाने लगी ।
इस प्रकार सभी कुलकरों ने अपने-अपने समय में समाज को सभ्यता का कोई न कोई अंग प्रदान किया जिससे आधुनिक सभ्यता का विकास होने लगा । ऐतिहासिक दृष्टि से विद्वानों ने इस काल को पूर्व और उत्तर पाषाण युग का समन्वित रूप कहा है।
तिरेसठ शलाका पुरुष
चौदह कुलकरों के पश्चात् जिन महापुरुषों ने कर्मभूमि की सभ्यता के युग में धर्मोपदेश व अपने चरित्र द्वारा अच्छे-बुरे का भेद सिखाया, ऐसे तिरेसठ महापुरुष हुए, जो शलाका पुरुष अर्थात् विशेष गणनीय पुरुष माने गए हैं। उन्हीं का चरित्र जैन पुराणों में विशेष रूप से पाया जाता है। इन तिरेसठ शलाका पुरुषों में चौबीस तीर्थंकर, बारह चक्रवर्ती, नौ नारायण, नौ बलभद्र और नौ प्रतिनारायण सम्मिलित हैं जिनके नाम इस प्रकार हैं
24 तीर्थंकर -1. ऋषभदेव, 2. अजितनाथ, 3. संभवनाथ, 4. अभिनंदन नाथ, 5. सुमतिनाथ, 6. पद्मप्रभ, 7. सुपार्श्व नाथ, 8. चंद्रप्रभ, 9. पुष्पदंत, 10. शीतलनाथ, 11. श्रेयांस नाथ, 12. वासपूज्य, 13. विमलनाथ, 14. अनंतनाथ, 15. धर्मनाथ, 16. शांतिनाथ, 17. कुंथुनाथ, 18. अरहनाथ, 19. मल्लिनाथ, 20. मुनिसुव्रत नाथ, 21. नमिनाथ, 22. नेमिनाथ, 23. पार्श्वनाथ, 24. महावीर
12 चक्रवर्ती- 1. भरत, 2. सगर, 3. मघवा, 4. सनतकुमार, 5. शांति, 6. कुंथु, 7. अरह, 8. सुभौम, 9. पद्म, 10. हरिसेन, 11. जयसेन, 9 नारायण - 1. त्रिपृष्ठ, 2. द्विपृष्ठ, 3. स्वयंभू, 4.
12. ब्रह्म दत्त,
पुरुषोत्तम 5. पुरुषसिंह 6. पुरुष