________________
228 / जैन धर्म और दर्शन
अनछना पानी पीने से हिंसा की संभावना तो रहती ही है, अनेक प्रकार के रोगों का शिकार भी होना पड़ता है। आजकल तो चिकित्सक भी छना जल पीने की ही सलाह देते हैं। वस्त्र द्वारा पानी छानने का प्रमुख उद्देश्य करुणा है, उसके साथ-साथ अनेक रोगों से भी बचाव हो जाता है। अभी कुछ दिन पहले भारत के राष्ट्रपति डॉ. शंकरदयाल शर्मा
कालीन उपराष्ट्रपति) ने एक धर्मसभा को संबोधित करते हुए इंदोर की एक घटना सुनाकर पानी छानकर पीने का महत्त्व बताते हुए कहा था कि “कुछ दिन पूर्व इंदौर के एक मुहल्ले में एक विशेष प्रकार का रोग फैला जिसमें पूरा-का-पूरा परिवार बिस्तर पकड़ लेता था। एक सीमित क्षेत्र में ही रोग से प्रभावी होने से चिकित्सक चिंतित थे। उस समय यह भी देखा गया कि उस मोहल्ले के जैन परिवार में इस रोग का लक्षण नहीं दिखा। डॉक्टर इससे चकित थे। बाद में खोज करने पर मालम हआ कि वॉटर टैंक जिससे कि पूरे मोहल्ले में पानी वितरित होता था, कई दिनों से उसमें एक चिड़िया मरी पड़ी थी। उसके पूरे शरीर में कीड़े पड़े थे। इसी कारण पूरा पानी विकृत हो गया था, वह विषाक्त पानी ही रोगों का कारण बना था।" जैन परिवारों में इस रोग का प्रभाव न होने का कारण छने जल का उपयोग ही था।
आजकल तो जो नल का पानी आता है कई बार तो उसमें नाली का पानी भी आ जाता है। कभी-कभी नल के पानी में केंचुएं भी देखे गये हैं, ऐसी घटनाएं आये दिन समाचार-पत्रों में छपती रहती हैं । अतः पानी को छानकर ही पीना चाहिए।
पानी छानने की विधि जल को अत्यंत गाढ़े (जिससे सूर्य का बिंब न दिखे) ऐसे वस्त्र को दोहरा करके छानना चाहिए। छन्ने की लंबाई-चौड़ाई से डेढ़ गुनी होनी चाहिए। ऐसा करने से अहिंसा व्रत की रक्षा होती है तथा त्रस जीव उस वस्त्र में ही रह जाते हैं, जिससे छना हुआ जल स जीवरहित हो जाता है। त्रस जीवों का रक्षण होने से मांस भक्षण के दोषों से बच जाता है। जल छानने के पश्चात् छनने में बचे जल को एक-दूसरे पात्र में रखकर उसके उपर छने जल की धार छोड़नी चाहिए उसके बाद उसे मूल श्रोत में पहुंचा देना चाहिए। इसके लिए कड़ीदार बाल्टी रखी जाती है, जिसे जल की सतह पर ले जाकर उड़ेला जाता है, ऐसा करने से उनको धक्का नहीं लगता तथा करुणा भी पूरी तरह पलती है। उक्त क्रिया को जीवाणी कहते हैं। छना हुआ जल एक मुहूर्त तक सामान्य गर्म जल छः घंटे तक तथा पूर्णतः उबला जल चौबीस घंटे
1.वत विधान सग्रह १ 30 पर उद्धृत 2. वसेणातिसूपीनने गालित नत्पिवेजलम्
अहिंसा वत रक्षार्थ मास दोषापनोदने । अम्वुगालित शेष तन्नक्षिपेत क्वचिदन्यतः, तथा कूप जल नदया तज्जलकूप वारिणि ॥ ध स. श्रावकाचार अ.6