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216 / बैन धर्म और दर्शन
राष्ट्र की रक्षा कर भारतीय इतिहास को गौरवान्वित किया है। वस्तुत: जैन धर्म उन क्षत्रियों का धर्म था, जो युद-स्थल में दुश्मन का तलवार से सत्कार/सामना करना जानते थे और क्षमा करना भी जानते थे। जैन धर्म के अनुसार अपने अस्तित्व और स्वाभिमान की रक्षा के लिए अस्त्र उठाना अपराध नहीं,धर्म है। उनकी लड़ाई न्याय के लिये न्यायपूर्वक होती थी।
बैन राजनीति के व्याख्याता आचार्य सोमदेव सूरी ने इसी बात को स्पष्ट करते हुये कहा है कि रणांगन में अस्त्र-शस्त्रों से ससज्जित शत्र तथा देशद्रोही व्यक्ति पर ही राजागण अपने शस्त्र का प्रहार करते हैं न कि कमजोर, निहत्थे,कायरों और सदाशयी निरपराध पुरुषों पर।
यःशस्त्र सहितो समरे रिपु स्यात् यः कण्टको वा निजमण्डलस्य अस्त्राणि तत्रैव नृपा क्षिपन्ति
न दीनकानीन शुभाशयेषु ।' अर्थात् अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर रणांगन में जो शत्रु बनकर आया हो या अपने देश का दश्मन बनकर आया हो.राजागण उसी पर अपने अस्त्र का प्रहार करते है। जैन राजनीति का यही आधार है। इस न्यायपूर्ण युद्ध में भी इसकी अहिंसा खंडित नहीं होती।
हिंसक भी शत्रु से युद्ध करता है और अहिंसक भी, दोनों के द्वारा युद्ध में भीषण नरसंहार होता है। फिर भी हिंसक निर्दयी और अहिंसक दयालु ही बना रहता है क्योंकि वह अपने इस कृत्य पर प्रसन्न नहीं होता। वह सिर्फ हिंसा के लिए हिंसा का रास्ता नहीं अपनाता अपितु परिस्थितियों के कारण उसे हिंसा करनी पड़ती है। हिंसक और अहिंसक की मानसिकता में महान् अंतर होता है। हिंसक के अंदर है आक्रमण, अहिंसक के अंदर है केवल रक्षा, हिंसक के हृदय में रहता है द्वेष और अहिंसक के हृदय में रहती है क्षमा,हिंसक को अपने द्वारा किए गए नरसंहार को देखकर हर्ष होता है तो अहिंसक को होता है पश्चात्ताप। अपनी इसी मनस्थिति के कारण गृहस्थ अपनी छोटी-मोटी अपरिहार्य हिंसाओं के होने पर भी अहिंसक बना रहता है। वस्तुत: वह हिंसक नहीं है, हिंसा उसे करनी पड़ रही
इससे यह भी स्पष्ट हो जाता है कि अहिंसा कायरता नहीं है,जीवन से पलायन भी अहिंसा का उद्देश्य नहीं है। अहिंसा तो व्यवहारिक जीवन को संतुलित बनाकर स्व और पर के घात से बचने का उपाय है। अहिंसा कायरता नहीं अपितु मानव में मानवता को प्रतिष्ठित करने का अनुष्ठान है।
पांच व्रत जैनाचार में इसी अहिंसा के अनुपालनार्थ सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, और अपरिग्रह व्रत रूप पंचसूत्रीय आचार की प्ररूपणा की गयी है। उक्त पांचों व्रतों का मुख्य उद्देश्य अहिंसा का अनुपालन ही है। जैसे खेत की फसल की सुरक्षा के लिए उसके चारों ओर बाढ़ लगाई
1. बस्ति क्लिकचम्पु पृष्ठ96