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जैनाचार / 213
पहुँचाने की भावना से शून्य पूर्णतः सावधान व्यक्ति द्वारा यदि अनायास किसी प्राणी का घात हो जाता है तो उक्त परिस्थिति में उसे हिंसक नहीं कहा जा सकता। इस बात को स्पष्ट करते हुए आचार्य श्री कुन्दकुन्द कहते हैं कि
- प्र. सा.
“उच्चालिदम्मि पाए इरिया समिदस्स णिग्गम ठाणे । आबाघेज्ज कुलिंगं मरिज्ज तं जोगमासेज्ज ॥ ण हि तस्स तणिमित्तो बंधो सुहमो वि देसिदो समये " 1 अर्थात् यदि कोई मनुष्य सावधानीपूर्वक जीवों को बचाते हुये देखभाल कर चल रहा है, फिर भी यदि कदाचित् कोई जीव उसके पैरों के नीचे आकर मर भी जाए तो उसे तज्जन्य हिंसा संबंधी सूक्ष्म पाप भी नहीं लगता क्योंकि उसके मन में हिंसा के भाव नहीं हैं तथा वह सावधान है।
इसके विपरीत यदि कोई मनुष्य "मेरी इस प्रवृत्ति से किसी का घात हो रहा है या नहीं, किसी को कष्ट पहुंच रहा है या नहीं” इस बात का विचार किए बिना एकदम लापरवाही और असावधानी से चल रहा है तो उसे हिंसानिमित्तक पाप अवश्य लगेगा भले ही जीव का वध हो या न हो ।
"मरदु व जीवदु व जीवा अयदाचारस्सणिच्छिदा हिंसा । पयदस्स णत्थि बंधो हिंसा मित्तेण समिदस्स ॥
"2
अर्थात् यदि कोई असावधानीपूर्वक अयत्नाचारी बनकर अपनी प्रवृत्ति कर रहा है तो जीव मरे या न मरे, उसे तज्जन्य पाप से कोई बचा नहीं सकता, तथा सावधानी से प्रयत्नपूर्वक चलने वाले मनुष्य द्वारा हिंसा हो जाने पर भी वह पाप का भागीदार नहीं होता ।
अतः यह स्पष्ट है कि जैन धर्म में मान्य हिंसा और अहिंसा जीवों के वधावध पर निर्भर न होकर हमारे भावों पर आधारित है। द्रव्य हिंसा और भाव हिंसा की उक्त व्याख्या को हम लोक प्रचलित इस उदाहरण से महजतया से समझ सकते हैं।
मान लें – किसी शहर में एक साथ तीन घटनाएं घट जाती हैं। पहली में एक डाकू एक व्यक्ति को मारकर उसका धन लूट लेता है, दूसरी में एक वाहन दुर्घटना में एक व्यक्ति की जान जाती है, तो तीसरी में ऑपरेशन टेबल पर एक व्यक्ति का जीवन समाप्त होता है । तीनों घटनाओं में एक-एक व्यक्ति के निमित्त से एक-एक व्यक्ति का जीवन समाप्त हुआ है । स्थूल दृष्टि से देखने पर तीनों का परिणाम (प्रतिफल) भी एक ही है। लेकिन तीनों की मानसिकता में बहुत अंतर । यही कारण है कि पुलिस भी तीनों पर अलग-अलग जुर्म कायम करती है तथा अदालत में भी डाकू, ड्राइवर और डाक्टर तीनों को अलग-अलग निर्णय सुनाया जाता है ।
पहली घटना में डाकू को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास अथवा मृत्युदण्ड भी दिया जाता है। उसके प्रहार से यदि सामने वाला बच भी जाए तो भी हत्या के प्रयास के कारण उसे कड़ी सजा भोगनी पड़ती है, क्योंकि यह हिसा स्वार्थ से प्रेरित अभिप्राय पूर्वक हुई है । दूसरी ओर वाहन दुर्घटना में हुई मृत्यु के लिए, तथ्यों के आधार पर यदि अयोग्य वाहन हो अथवा ड्राइवर के असावधान होने पर उसे कुछ सजा दी जाती है । यह
1. प्र. सा. मू. गा.
2 प्र. सा. मू. गा.