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मोक्ष के साधन
मोक्ष के स्वरूप की तरह मोक्ष के साधन के संबंध में भी विभिन्न दर्शनों में मतभेद है। कोई ज्ञान मात्र को मोक्ष का साधन मानते हैं, तो कुछ दार्शनिक आचरण मात्र को मोक्ष का साधन बताते हैं, तो कुछ केवल भक्ति को संसार संतरण का सेतु समझते हैं। जैन दर्शनकार श्रद्धा ज्ञान और आचरण की समष्टि को ही मोक्ष-मार्ग बताते हैं ।
"सम्यक दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्गः।" यह जैन दर्शन का प्रसिद्ध सूत्र है, अर्थात् सम्यक् दर्शन, सम्यक् ज्ञान और सम्यक् चारित्र को संयुति ही मोक्ष का मार्ग है । इसके विपरीत मिथ्या दर्शन, मिथ्या ज्ञान और मिथ्या आचरण संसार की वृद्धि का हेतु है । सम्यक् शब्द समीचीनता का द्योतक है। यह तीनों में अनुगत है । यहां दर्शन का अर्थ श्रद्धा है, तत्त्वों के यथार्थ स्वरूप की श्रद्धा को सम्यक् दर्शन कहते हैं। वास्तविक बोध सम्यक् ज्ञान है तथा आत्म-कल्याण के लिए किया जाने वाला सदाचरण सम्यक् चारित्र है।
मोक्ष मार्ग श्रद्धा, ज्ञान और आचरण तीनों के योग से ही मोक्ष मार्ग बनता है। लोक में रत्नों की तरह दुर्लभ होने के कारण इन्हें रत्नत्रय भी कहते हैं, ये तीनों मिलकर ही मोक्ष मार्ग कहलाते हैं। पृथक्-पृथक् तीनों से मोक्ष मार्ग नहीं बनता न ही किन्हीं दो के मेल से । यदि कोरी श्रद्धा मात्र से हमारा कार्य होता तो भोजन की श्रद्धा मात्र से पेट भर जाना चाहिए। यदि ज्ञान मात्र से ही दःख की निवत्ति होती तो जल के दर्शन मात्र से ही प्यास की तप्ति हो जानी चाहिए। यह सब बातें प्रत्यक्ष विरुद्ध है। इसी प्रकार कोरा क्रियाकांड भी अंधे पुरुष के आचरणवत् निरर्थक है। इसलिए कहा गया है कि “अकर्मण्यों का ज्ञान प्राणहीन है तथा अविवेकियों की क्रिया निस्सार है। श्रद्धाविहीन बुद्धि और प्रवृत्ति सच्ची सफलता प्रदान नहीं कर सकती।"
आचार्य पूज्यपाद स्वामी ने उक्त बात को एक उदाहरण द्वारा स्पष्ट करते हुए कहा है
1. तसू. 1/1 2. रक.श्रा 3 3 प. का गा. 107 4. वही 5. सर्वा, सि 1/1, पृ.4 6. वही