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कर्म और उसके भेद-प्रभेद / 131
20. उद्योत : चंद्रकांत मणि और जुगनू आदि की तरह शरीर में शीतल प्रकाश उत्पन्न करने वाला कर्म 'उद्योत नाम-कर्म' है।
___21. विहायोगति : इस कर्म के उदय से जीव की अच्छी या बुरी चाल होती है। यह प्रशस्त और अप्रशस्त के भेद से दो प्रकार की है। हाथी, हंस आदि को प्रशस्त चाल को प्रशस्त विहायोगति तथा ऊंट, गधा आदि की अप्रशस्त चाल को 'अप्रशस्त विहायोगति' कहते हैं। यहां गति का अर्थ 'गमन' या 'चाल' है।
22. प्रत्येक : जिस कर्म के उदय से एक शरीर का एक ही जीव स्वामी हो, वह 'प्रत्येक शरीर नाम-कर्म' है। अर्थात् जिस कर्म के उदय से भिन्न-भिन्न शरीर प्राप्त होता है, वह 'प्रत्येक शरीर नाम-कर्म' है।
23. साधारण : जिस कर्म के उदय से अनन्त जीवों को एक ही शरीर प्राप्त हो वह 'साधारण नाम-कर्म है।
24. स : जिस कर्म के उदय से द्विइन्द्रियादि जीवों में उत्पन्न हों उसे 'वस नाम-कर्म' कहते हैं।
25. स्थावर : पृथ्वी, अप, तेज, वायु और वनस्पति आदि एकेन्द्रियों में उत्पन्न कराने वाला कर्म 'स्थावर नाम-कर्म' है।
26. बादर : स्थूल शरीर उत्पन्न कराने वाला कर्म 'बादर नाम-कर्म ' है।
27. सूक्ष्म : सूक्ष्म अर्थात् दूसरों को बाधित एव दूसरों से बाधित न होने वाले शरीर को उत्पन्न करने वाला कर्म 'सूक्ष्म नाम-कर्म' है। इस कर्म का उदयमात्रएकेन्द्रिय जीवों के होता है।
28. पर्याप्ति : जिस कर्म के उदय से जीव स्व-योग्य अहारादिक पर्याप्तियों को पूर्ण कर सके वह 'पर्याप्ति नाम-कर्म हैं।
29. अपर्याप्ति : जिस कर्म के उदय से जीव स्व-योग्य पर्याप्तियों को पूर्ण न कर सके, उसे 'अपर्याप्ति नाम-कर्म' कहते हैं।
30. स्थिर : शरीर के अस्थि,मांस, मज्जा आदि धातु, उपधातुओं को यथास्थान स्थिर रखने वाले कर्म को 'स्थिर नाम-कर्म' कहते हैं।
31. अस्थिर : शरीर के धातु तथा उपधातुओं को अस्थिर रखने वाला कर्म 'अस्थिर नाम-कर्म' है।
32. शुभ : शरीर के अवयवों को सुन्दर बनाने वाला कर्म 'शुभ नाम-कर्म' है। 33. अशुभ : 'अशुभ नाम-कर्म' असुन्दर शरीर प्राप्त कराता है।
34. सुभग : सौभाग्य को उत्पन्न करने वाला कर्म 'सुभग नाम कर्म' है। अथवा जिस कर्म के उदय से सबको प्रीति कराने वाला शरीर प्राप्त होता है। उसे 'सुभग नाम-कर्म' कहते
35. दुर्भग : गुण युक्त होने पर भी दुर्भग नाम-कर्म अन्य प्राणियों में अप्रीति उत्पन्न कराने वाला शरीर प्रदान करता है।
36. सुस्वर : कर्ण प्रिय स्वर उत्पन्न कराने वाला कर्म 'सुस्वर नाम-कर्म' है। 37. दुःस्वर : 'दुःस्वर नाम कर्म' के उदय से कर्ण-कटु, कर्कश स्वर होता है।