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अतीत की झलक
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तत्पश्चात् भगवान् ने तत्व के स्वरूप तथा मोक्षमार्ग का प्रतिपादन किया । तीस वर्षं तक स्थान-स्थान पर परिभ्रमण करके अन्त में पावापुरी पधारे। मोक्ष की घडी निकट थी, किन्तु वे विश्व को अपनी पुण्यमयी, कल्याणकारिणी श्रीर परमपावनी वाग्धारा से प्राप्लावित कर रहे थे । आखिर कार्तिक कृष्णा श्रमावस्या को रात्रि में वे समस्त कर्मों से विनिर्मुक्त, अशरीरी सिद्ध हो गए ।
भगवान् महावीर विश्व के अद्वितीय क्रान्तिकारी महापुरुष थे । उनकी क्रान्ति एक क्षेत्र तक सीमित नही थी। उन्होने सर्वतोमुखी क्रांति का मंत्र का था । आध्यात्मिक, दर्शन, समाजव्यवस्था, यहा तक कि भाषा के क्षेत्र मे भी उनकी देन वहुमूल्य है । उन्होने तत्कालीन तापसो को तपस्या के बाह्य रूप के बदले वाह्याभ्यन्तर रूप प्रदान किया । तप के स्वरूप को व्यापकता प्रदान की । पारस्परिक खण्डन- मण्डन में निरत दार्शनिको को अनेकान्तवाद का महामंत्र दिया । सद्गुणों की ग्रवगणना करने वाले जन्मगत जातिवाद पर कठोर प्रहार कर गुण-कर्म के आधार पर जाति-व्यवस्था का प्रतिपादन किया । इन्होने नारियो की प्रतिष्ठा को भूले हुए भारत को साध्वी- सघ बनाकर प्रतिष्ठा प्रदान की। यज्ञ के नाम पर पशुओ से खिलवाड करने वाले स्वर्गकामियो को स्वर्ग का सच्चा मार्ग वतलाया । नदी समुद्रो में स्नान करने से, ग्राग में जल मरने से या पाषाणो की राशि इकट्ठी कर देने से धर्म समझने की लोकमूढता का ह्रास किया । लोकभापा को अपने उपदेश का माध्यम बनाकर पण्डितो के भाषाभिमान को समाप्त किया । सक्षेप में यह कि महावीर स्वामी ने समाज के समग्र मापदंड बदल दिये और सम्पूर्ण जीवन दृष्टि मे एक दिव्य और भव्य नूतनता उत्पन्न कर दी ।
भगवान् महावीर का उदार संघ
यो तो भगवान् महावीर के चौदह हज़ार सत शिग्य थे, किन्तु ग्यारह उनमे प्रधान, थे, जो जैन परम्परा मे गणधर नाम से विख्यात है । यह ग्यारहो शिष्य पहले वैदिक धर्म के अनुयायी थे, और वेद-वेदाग के पारगामी प्रखर पण्डित थे । इनमे भी गौतम इन्द्रभूति के पाण्डित्य की सबके ऊपर धाक थी । वह भगवान् महावीर से शास्त्रार्थ करने गये । पर भगवान् से प्रभावित होकर उनके शिष्य बन गये । उनके पश्चात् शेष दसो ने भी उन्ही का अनुसरण किया । सबने ती दीक्षा प्रगीकार की और वे वीरसंघ के स्तभ वने ।
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भगवान् के अनुपम त्यागी, तप और सयममय उपदेश सुनकर वीरागक,