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मंगलाचरण
नमस्कारमंत्र णमो अरिहंताणं, णमो सिद्धाण, णमो आयरियाणं । णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं ॥
(भगवती सूत्र, पाठ १ । अर्थात् अर्हन्तो को नमस्कार हो, सिद्धो को नमस्कार हो, प्राचार्यों को नमस्कार हो, उपाध्यायो को नमस्कार हो, और लोक के समस्त साधुजनो को नमस्कार हो।
मंगलपाठ चत्तारि मंगलं, अरिहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं।
___चत्तारि लोगुत्तमा, अरिहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा।
चत्तारि सरणं पवज्जामि, अरिहिंता सरणं पवज्जामि, सिद्धासरणं पवज्जामि, साहूसरणं पवज्जामि, केवलिपण्णत्तो धम्मो सरणं पवज्जामि ।
अर्थात् चार मंगल है --
१. अर्हन्त मगल है, २. सिद्ध मगल है, ३. साधु मगल है, ४. केवली द्वारा प्ररूपित धर्म मगल है।
लोक में चार उत्तम है --
१. महन्त, लोक मे उत्तम है, २. सिद्ध, लोक में उत्तम है, ३ साधु, लोक में उत्तम है, ४. केवली द्वारा प्ररूपित धर्म, लोक में उत्तम है ।
में चार शरण ग्रहण करता हू -
१. अर्हन्त की शरण ग्रहण करता हू, २. सिद्ध की शरण ग्रहण करता हूं, ३. साधु की शरण ग्रहण करता हूँ, ४. केवली द्वारा प्ररूपित धर्म की शरण ग्रहण करता है।