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आशीर्वाद नाणणं दंसणेणं च चरित्तेणं तवेण य । सन्तीए मुत्तिए,बड्डमाणो भवाहि य ॥
--उत्तराध्ययन, अ० २२, गा० २६॥ *
"सद् ज्ञान, अटूट निष्ठा, तथा चारित्र बल के सहारे * तप, क्षमा, और निर्लोभता के सम्बल से तुम सदा वृद्धि पाते
रहना।"
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