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________________ १२४ और क्षुद्र होता है । मगर अपने स्वार्थ के लिए दूसरो के संरक्षण का गुण उसमें । होता है ।' ३. कापोत लेश्या -- ''इस लेश्या वाला हे गौतम ! मन वाणी श्रीर कार्य से वक्र होता है । मिथ्यादृष्टि, अपने दोपो को ढाकने वाला और परुषभाषी होता है, मगर अपने स्वार्थ के लिए पशुओ का भी संरक्षण करता है ।' ४ तेजोलेश्या -- गोतम ! इस लेश्या वाला पुरुष पवित्र, नम्र, अचपल, दयालु, विनीत, इन्द्रिय जयी, पाप-भीरु और आत्मसावना की आकाक्षा रखने वाला होता है । वह अपने सुख की ही अपेक्षा नही रखता, किन्तु दूसरों के प्रति भी उदार होता है ।' ५. पद्मलेश्या -- ' गौतम । पद्म लेश्या वाले की मनोवृत्ति धर्मध्यान और शुक्लध्यान मे विचरण करती है । वह पुरुष कमल के समान अपनी मुवास से दूसरो को आनन्दित करता है । सयम का उत्कृष्ट सावक, कषायो के अधिकाश पर विजय पाने वाला, मितभाषी, जितेन्द्रिय श्रीर सोम्य होता है ।' ६ शुक्ल लेश्या -- ४ ' हे गीतम । यह मनोवृत्ति अत्यन्त विशुद्ध होती है । शुक्ल लेश्या वाला पुरुष समदर्शी, निर्विकल्प ध्यानी, प्रशान्त ग्रन्त करण वाला, समिति गुप्ति से युक्त अर्थात् प्रत्येक प्रवृत्ति में सावधान और अशुभ प्रवृत्ति से दूर, सम्पूर्ण प्राणी सृष्टि पर प्रेमामृत बरसाने वाला, और वीतराग होता है । ' लेश्याओ द्वारा विचारो का शुभ-अशुभभाव बताकर प्रारम्भ की तीन लेश्याओ को त्याज्य और अन्तिम तीन लेश्याओ को उपादेय कहा है । " पहली तीन, पाप-लेश्याए या अधर्म - लेश्याए है । अन्त की तीन, शुभ या धर्मलेश्याए कहलाती हैं । अन्तिम शुक्ल लेश्या आत्मविकास की अनिवार्य गर्त है । अगर मनुष्य की विचारधारा, क्षुद्र, शुभ्रतर और शुभ्रतम की ओर चल पड़े तो मनुष्य अपनी आत्मा का शीघ्र ही कल्याण कर सकता है और विश्वशान्ति के लिए बहुत कुछ कर सकता है। १ उत्तराध्ययन, अ० ३४, गा० २५, २६, 17 11 33 12 २. २७, २८, २९, ३०, ३१, ३२, ५६, ५७ mo ३ ४ जन धम شو 11 19 12 " 133 11 33 33 11 19 " 23
SR No.010221
Book TitleJain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSushilmuni
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1958
Total Pages273
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size13 MB
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