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मनोविज्ञान
१२३ उनमें से एक ने कहा-'लो भाई, यह रहा जामुन का पेड़ । बस, इसे धराशायी कर दे और मनचाहे फल खाए।'
दूसरे ने कहा---'वृक्ष को काटने से क्या लाभ हे ? इसकी मोटी-मोटी शाखाए ही काट लो।'
तीसरा--'शाखाप्रो को काटने की भी क्या आवश्यकता है ? टहनिया काट लेना ही काफी होगा।'
चौथा-'अरे भाई, फलो के गुच्छे ही तोड लो न ।' पांचवा---'हमे तो पके जामुन चाहिए । वही क्यो न तोडे ।'
छठा---'मुझे तुम लोगो की एक भी वात नही जची । जब हमे पके फल ही चाहिए तो फिर नीचे गिरे हुए ही वीन-बीन कर क्यो नही खा लेते । व्यर्थ वृक्ष को, डालियो, टहनियो या गृच्छो को काटने-तोडने की क्या आवश्यकता है?'
विचारो के शुभत्व-अशुभत्व का तारतम्य इस उदाहरण से समझा जा सकता है। इसी तारतम्य के आधार पर लेश्याओ का छह प्रकारो मे वर्गीकरण किया गया है। छह लेश्याए यह है :१. कृष्णलेश्या,
२ नील लेश्या, ३. कापोत लेश्या,
४ तेजो लेश्या, ५ पद्मलेश्या,
६ शुक्ल लेश्या। लेश्या के संबंध में प्रश्न करने पर भगवान् महावीर ने गौतम से कहा
१ कृष्ण लेश्या --'हे गोयमा | कृष्ण लेश्या मनोवृत्ति का निकृष्टतम रूप है । कृष्ण लेश्या वाले के विचार अत्यन्त क्षुद्र, क्रूर, कठोर, और नृशस होते है। वह अहिंसा आदि व्रतो से घृणा करता है। तीनभाव से पापाचरण करता है, अविचारी, अविवेकी, भोग-विलासरत, इह लोक-परलोक की परवाह न करने वाला, अतीव स्वार्थी और अपने क्षुद्र आनन्द के लिए जगत् मे प्रलय ला देने वाला होता है।
२ नील लेश्या--३'हे गोयमा । कृष्ण लेश्या वाले की अपेक्षा नील लेश्या वाले की मनोवृत्ति कुछ अच्छी होती है, किन्तु वह ईर्ष्यालु, असहिष्णु, मायावी, निर्लज्ज, पापाचारी, लोलुप, अपने सुख का गवेषक, विपयी, हिमाकर्मी
१ उत्तराध्ययन अ०३४, गा० २१, २२, २ " आ० ३४, गा० २३, २४ ।