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________________ (७६) ग्रहण करने वाले अन्तर विचाराश्रयी ज्ञान को अवधि की संज्ञा दी गयी है, जैन परिभाषा में । · यद्यपि आधुनिक विज्ञान की सूक्ष्म अणु स्कंधों को यंत्रों द्वारा ग्रहण करने की पद्धति अवधि बोध का द्योतक नहीं कही जा सकती, फिर भी चक्षु से परे के सूक्ष्म पदार्थों को प्र करने की क्रिया ऐन्द्रिक प्रणाली से भिन्न है एवं अन्तर विचार स्तर से प्राप्त होने वाले किसी अनोखे बोध का परिचय देती इसे मान्य नहीं कर सकता कोई । - हम इतना तो दावे के साथ कह सकते हैं कि रूपवान सूक्ष्म तत्त्वों का बोध करने की पद्धति सामान्य इद्रिय या तद्विषयक मनोग्राह्य बोध से कुछ परे की वस्तु है - यह निर्णय हमसे अज्ञात् न था । अवधि बोध द्वारा कार्यकारी होने वाले अनेक अद्भुत कारनामों के वर्णन हमें कथा साहित्य में मिलते हैं। जिनको, , आज हम हमारे प्रयोगशास्त्रों के अभाव में, यद्यपि प्रत्यक्ष तथा प्रमाणित करने में समर्थ नहीं होते, तो भी उनके महत्त्व को यों ही भुला देने या खो देने को जी तत्पर नहीं होता । विचार अंतर मन की क्रिया है। जैन सिद्धांत यह स्थिर कर चुका है कि पराश्रित मन की प्रत्येक क्रिया से स्पदन पैदा होते हैं, एवं उन स्पंदनों द्वारा तद्योग्य सूक्ष्म अणु-परमाणुओं का ग्रहण सार्थक होता है । अणु परमाणु पौद्गलिक हैं अतः रूपवान हैं, यह ध्यान में रखने योग्य बात है यहां । प्रत्येक जीव मन द्वारा ( इंद्रियों द्वारा भी ) अनंत सूक्ष्म अणु
SR No.010220
Book TitleJain Darshanik Sanskriti par Ek Vihangam Drushti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShubhkaransinh Bothra
PublisherNahta Brothers Calcutta
Publication Year
Total Pages119
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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