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( ७२ ) व भावात्मक (आध्यात्मिक) शोध के लिये प्रयोग में लाना . चाहिये-इतना अनुरोध मात्र कर हम विराम लेते हैं। .. "निक्षेप" जैन सिद्धांत का अद्भुत रत्न है । नाम, स्थापना, द्रव्य व भाव-परिक्षा के समान, किसी भी पदार्थ को अथवा उसके गुण पर्याय-नैसर्गिक व व्यवहारिक रूप को समझने धारण करने व स्पष्ट करने में और कोई अन्य प्रणाली सफल नहीं हो सकती।"
निक्षेप समस्त ज्ञान की मानो कुञ्जी है । इसके द्वारा पदार्थ के याथार्य को सम्यग् उपलब्ध किया जा सकता है। किसी अन्य सिद्धांत ने इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं सोची । पदार्थ का नाम, उसका बाह्य रूप उसके द्रव्यत्त्व की प्रामाणिकता एवं उसके गुण का स्वभाव-स्वरूप इन चार बातों के दायरे से परे कुछ नहीं रह जाता (पदार्थ में ) एक भी प्रश्न का उत्तर यदि ना में मिलता है तो पदार्थ के अस्तित्व में शङ्का की जा सकती है।
क्या वैज्ञानिक निर्णयों अथवा आध्यात्मिक तत्त्वों या सामान्य व्यवहारोपयोगी धारणाओं-सभी के लिये तो यह "निक्षेप" परिक्षा मन्त्र है। निक्षेप के वैशिष्ट्य व उपयोग की ओर किसी का आवश्यक ध्यान नहीं गया है । पुराकाल में अन्य दर्शनों को तो जैन दर्शन की कटु आलोचना करने ही से विराम नहीं मिलता था, अतः वे जैन दर्शन के गुणों से परिचित होने का अवकास कैसे पाते किंतु दुख है कि आज भी इस द्रव्य परिक्षा के मन्त्र से यहां के वैज्ञानिक अथवा दार्शनिक अनभिज्ञ हैं। पाश्चात्य वैज्ञानिकों की तरह इस तरह के बीज मंत्रों का व्यवहार में प्रयोग कर शोधानुसंधानादि द्वारा ज्ञान के क्षेत्र को यहाँ के मानव के लिये भी उपयोगी बनाना चाहिये-यह यों ही उडा देने की बात नहीं है।