________________
को सीमित न रखें वल्कि भाव क्षेत्र में भी आगे बढें, यह मानवता का और विशेष कर भारतीयों का संकेत है।
जैन न्याय स्वतः कितना परिपूर्ण है यह तो उसका अध्ययन करने का सौभाग्य प्राप्त करने वालों को ही विदित हो सकता है पर प्रसङ्ग वश यहां इतना कहना अनुचित नहीं, कि युक्ति व सत्य का आश्रय लेने में यहां भी जैन ऋषियों ने मानों सब से होड लगाई है। जैन नयों का वर्णन व विवेचन व उनकी परिभाषाओं की शैली कितनी तल स्पर्शी है यह नैयायिकों से अविदित नहीं है। . न्याय की व्याख्या या व्यवस्था करते समय जैन मेधावियों ने कभी ज्ञान व सत्य से द्वेष व ईर्षा नहीं की बल्कि अन्य विचारकों व सिद्धांतों के सत्योल्लेखों को यथावत् यथास्थान स्वीकार किया। सत्य को स्वीकार करने की यही विशेषता जैन के समन्वय सिद्धांत का प्रधान कारण है। — जैन नयों का प्रयोग कर सामाजिक व्यवहार, बौद्धिक ज्ञान व भौतिक अथवा भावात्मक वैज्ञानिक शोध में अग्रगति की जा सकती है, यह विज्ञो से अविदित नहीं है । ___ सांख्य, बौद्ध आदि अन्य न्याय व्यवस्थाओं के सन्मुख जैन न्याय का मस्तक गर्वके साथ ऊँचा उठ सकता है एवं अनेकांशों में तो युक्ति प्रखरता के कारण सब को पीछे छोड कर उत्तुंग शिखर की भाँति अत्यन्त उन्नत व विशाल हो वह सत्य के मर्म, को भेद करने में समर्थ हो सका है। नैगम संग्रहादि अनेक भेदों से पूर्ण अत्यन्त व्यवहारोपयोगी इस न्याय व्यवस्था का विस्तृत विवरण . करने का अवकाश यहां नहीं हैं पर इस न्याय व्यवस्था को भौतिक,
.
.
तनहा है।