________________
प्रस्तुत पुस्तिका में जैन दर्शन की तत्त्व व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए छै द्रव्यों का तुलानात्मक परिचय कराया गया है यद्यपि भगवान महावीर के पहले से ही जैन धर्म प्रचलित था इसके अकाट्य प्रमाण मिल चुके हैं। किंतु वर्तमान में प्रचलित जैन धर्म के उपदेष्टा भगवान महावीर ही थे; क्योंकि वे जैन धर्म के चौवीस तीर्थङ्करों में से अंतिम तीर्थङ्कर थे। इससे लेखक ने भी उन्हीं को आधार मानकर जैन दर्शन की संस्कृति पर प्रकाश डालाहै
प्रारम्भ में लेखक ने हिंदु संस्कृति की चर्चा करते हुये लिखा है। "यह प्रश्न अाज विचारणीय है कि जैन अपने आपको हिंदू संस्कृति से प्रथक माने या सम्मिलित ? हिंदू शब्द भारतीय संस्कृति को स्वीकार करने वाले प्रत्येक व्यक्ति का उद्बोधन करने में समर्थ है । हां, जहां धर्म या व्यबहार का प्रश्न आता है वहां जैन व शैव, वैष्णव आदि का पृथक २ जिक्र किया जा सकता है।'
लेखक के इन विचारों से कोई जैन असहमत नहीं हो सकता यदि हिन्दु शब्द धर्म का विशेषण न होकर राजनैतिक व भौगोलिक विशेषता का द्योतक है, जैसा कि लेखक ने लिखा है तो प्रत्येक जैन अपने को हिन्दू कहते हुये नहीं सकुचायेगा किन्तु आज. तो हमारे कोई कोई नेता भी वेद और ईश्वर को मानने वाले को ही हिन्दू कहते हैं । इसी लिये जैन अपने को हिन्दु कहते हुए सकुचाते हैं । विभिन्न विचार धाराओं के समन्वय की दृष्टि से वेद प्रतिपादित