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प्राक्कथन
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जैन दार्शनिक संस्कृति पर एक विहङ्गम दृष्टि " पुस्तिका को पढ़कर मुझे प्रसन्नता हुई । इसके लेखक श्री शुभकरणसिंह बी० ए० से मेरा प्रथम परिचय उनकी इस पुस्तिका के द्वारा ही हुआ है । किन्तु साक्षात् परिचय से यह परोक्ष परिचय कम प्रभावक तो नहीं ही कहा जा सकता ।
पुस्तक को पढ़कर मुझे लगा कि लेखक दर्शन शास्त्र के साथ ही साथ विज्ञान के भी, अभ्यासी हैं और जैन दर्शन को उन्होंने एक विचारक और सत्यं शोधक की तुलनात्मक दृष्टि से देखा है । ऐसा हुये बिना कोई जैन दर्शन की गम्भीर विचार धारा से इतना प्रभावित नहीं हो सकता ।