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अन्य वस्तुऐं भी अपनी २ परिधि में गति पूर्वक स्थित है । सामान्य “कण" भी कण रूप में थित है--उसमें भी अणु परमाणुओं का आवागमन निरन्तर होता रहता है इसलिये वह स्थिति भी गति युक्त है।
प्रत्येक स्कंध की स्थिति इस स्थिति सहायक अधर्म शक्ति ( तत्व ) की सहायता या सहानुभूति से सार्थक है अन्यथा (स्थति शक्ति के अभाव में ) अनियमित गति को रोकने का अन्य कोई उपाय नहीं रहता । नियमितता का पोषक यह अधर्म तत्व अत्यंत आवश्यक सिद्धांत शैली का निर्माण करने में समर्थ हुआ
स्थिति नियामक शक्ति की धारणा यो सत्य बन कर जैन, संस्कृति के तत्व कोष को आज भी सजीवित किये हुए है-अभी इस सत्य की ओर किसी का ध्यान आकर्षित नहीं हुआ है । युरोपीय वैज्ञानिकों को स्थिति सहायक शक्ति मानने की युक्ति को किसी रूप में स्थिर करने का अवकाश नहीं मिला है ( क्योंकि गति ध्वंश के लिये गति शोध में ही अधिकांश समय का उपभोग दिया है पाश्चात्यों ने ) किंतु भारतीय वाङ्मय में स्थान २ पर हमें ऐसे उदाहरण मिलते हैं जो स्थिति शक्ति के सार्थक विशिष्ट उपयोग के बिना किसी प्रकार संभव नहीं हो सकते।
हमारे पुरातन इतिवृत्त में, जिसे चाहे.आज के इतिहासज्ञ अधूरी शोध के कारण पूर्णतया प्रमाणित करने में समर्थ या उद्यत भी न होते हों, सारगर्मित वाक्यों में जब इन विषयों का