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( ५२ ) निर्भर है एवं उनका कियत् काल तक स्थायित्व है यह बोध होने पर निर्माण व ध्वंश से उत्पन्न होने वाले वैसादृश्य से मनोभावों को विमुक्त अथवा परे रखने में सहायता मिल सकती है। चेतन की पराश्रयता इस काल के बोध के साथ तिरोभूत होती चली जाती है। मोह, अज्ञान, अस्थिरता काल की अभिज्ञता के परिणाम हैं तथा ज्यों २ जिस पदार्थ के काल का आवरण अनवगुण्ठित होता है, मनोभावों का ताटस्थ्य स्थिर हो चित्त को विश्राम देता हुआ उस २ पदार्थ के स्वरूप की विलक्षणता को सुस्पष्ट कर देता है, परिणामतः चेतन उन्मुक्त हो अपनी स्वाभाविक आलोकमयी ज्ञानधारा को दिदिगंत व्यापी काल-प्रवाह के साथ सयुक्त कर सत्य व शांत को स्वतंत्र आत्म सुलभ व चिरस्थायी बनाने में समर्थ होता है ।
भिन्न २ पदार्थों पर पड़ने वाले काल के प्रभावों का जो कुछ उल्लेख इस नष्ट-प्राय साहित्य से प्राप्त हुआ है। आज के विज्ञान के साथ उसके सारत्व की तुलना कर हमें बड़ी प्रसन्नता होती है। अनभिज्ञों के हस्तक्षेप से व्यवहारिक विषयों में कुछ अटपटी बातें मिश्रित होगयी हैं एवं उन्हें देखकर सामान्यबुद्धि सत्य को सहसा खोज निकालने में समर्थ नहीं होते, पर इतने से उस तत्वोल्लेख की महत्ता कम नहीं हो जाती।।
जड़, जोव या आकाशादि द्रव्यों पर काल प्रभाव के कारण जो परिवर्तन घटित होते हैं उनको लेकर हो तो इस जगत् की स्थिति है । समय मात्र के लिये यदि हम सोचें कि काल का प्रबाह रुक जाय, तो किस द्रव्य को अवस्थित रखने में कोई