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आविष्कारों की सफलता सार्थक हो सकी है एवं ज्यों २ मनुष्य आगे कूच करता है, प्रकृति पर उसका अधिकार बढ़ता चला जा रहा है । आज तक अन्य दर्शन जैन के समय विभाग को उपहास व उपेक्षाकी दृष्टि से देखते आये हैं, किंतु उनकी यह धारणा अदूरदर्शिता पूर्ण है । महावीर के सकेतानुसार ज्ञान विज्ञान के लिये सूक्ष्म समय विभागों का प्रयोग न करने के कारण भारतीय संस्कृति के उन्नति पथ को रुद्ध हो जाना पड़ा वह किसी विज्ञ से तनिक सा विचार करने पर अविदित नहीं रह सकता ।
काल का व्यवहार में आने वाला रूप भिन्न २ अपेक्षाओं के कारण भिन्न २ है । मनुष्य के लिये उपयोगी गणना "क्षण" है तो पार्वतीय खंड के स्वाभाविक निर्माण या ध्वशं के लिये कुछ अन्य गणना की आवश्यकता है और यह अन्य क्षण मनुष्य के युगों अथवा शताब्दियों तक को अपने घेरे में बाँध सकता है । किस स्कंध के नैसर्गिक निर्माण अथव ध्वशं के लिये काल को किस
अपेक्षा का प्रयोग होता है-इसी का बोध हो जाय तो मानव उस निर्माण को प्रयत्न साध्य करने में सफल हो सकता है । यह भी बुद्धिगम्य है कि संयोगानुसार स्कंध विशेष के निर्माण के लिये आवश्यक समय को कम या अधिक किया जा सकता है।
संमय के आधार पर सूक्ष्म माप-क्रिया का क्रम स्थिर है एवं सूक्ष्म माप यन्त्रों का आविष्कार, दूसरे शब्दों में. समय के विभाग द्वारा सिद्ध होता है । स्कंधों का संश्लेषण, तद्रूप में स्थायित्त्व व क्रमशः विसर्जन काल के ही खेल हैं । भिन्न २ स्कंधों के संयोग सम्पादन की क्रिया काल के यथार्थानुमान पर