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नहीं रह सकता । गम्भीर मनन धारा का सम स्वरूपी होने के कारण लेखनी की परिमित शब्द राशि द्वारा इसे छूने का क्षुद्र प्रयास हम करना नहीं चाहते, फिर भी इतना कहना अनुचित नहीं होगा कि गति स्थिति शून्य इस निश्चेष्ट अभेद्याकाश की धारणा पर वैज्ञानिक अवश्य ध्यान देवें ।
अपेक्षाकृत स्थूलावयवों को बहिर्भूत कर अनेक प्रकार के सूक्ष्म परिणामों की संभावना को आविष्कारक वैज्ञानिक सार्थक किया करते हैं, इससे आपेक्षिक गति शून्य आकाश को तो वे शिक रूप में समझ पाये हैं किंतु इससे आगे नहीं बढ़ सके हैं अब तक ! आकाश का यह अद्भुत स्वरूप योंही हँसी में उड़ा देने लायक 'बात नहीं है बल्कि विचार व ज्ञान की नवीन धारा के लिये प्रशस्त मार्ग खोलने का काम करेगी यह धाररणा ।
काल की बात हम क्या कहें, इस काल के प्रवाह के कारण ही हमारा जीवन है, स्थिति है; और हमारा ही क्या समस्त चेतन, जड़ या अन्य परिकल्पनीय पदार्थों भावों का भी जीवन इसी काल धारा से प्लावित हो शक्ति लाभ करता है। महावीर ने काल को
महत्ता दी - निश्चेष्टता जीवन का अंत है, सचेष्टता - सक्रियता
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जीवन की गति - इसी सचेष्टता का बोध करने के हेतु उन्होंने इस सत्य को इन शब्दों में पिरोयाः - सक्रियत्व का अर्थ है परिवर्तनप्रगति अवस्था विशेषसे क्रमशः अग्रसर होने की स्वाभाविक, सांयोगिक अथवा प्रायत्निक क्रिया - यह क्रम स्वभाव है जड़ व जीव द्रव्यों का अतः इस प्रगति क्रम के रुकने का अर्थ हैं, स्वभाव का नाश, द्रव्य का नाश है। अतः द्रव्यत्व की स्थिति के