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आकर्षक है; एक सूक्ष्म तम आकाश प्रदेश में अनेक द्रव्यों को एक साथ अवकाश देने की क्षमता का युक्ति पूर्ण उल्लेख अत्यंत मौलिक कोटि के विचारांशों में से है। __यों तो आकाश का प्रधान व्यवहार गुण निराबाधत्व हो है किंतु आकाश में अत्यन्त अद्भुत कोटिका अन्य गुण और है जिसे महावीर के अतिरिक्त और किसी मेधावी ने आज तक नहीं स्रोचा। यह है उसका बाधत्व-महावीर की व्यवस्था के अनुमार आकाश के दो विभाग हैं, एक वह ह जां गति स्थिति का अनवरत प्रवाह उद्दाम वेग से जीव जड की प्रेरणाओं के कारण अतीत से अनागत की ओर काल का निर्माण करते हुये अग्रसर होरहा है, दूसराहै गंभीर शांत निर्लिप्त अभेद्य अखंड आकाश का अलोक्तव जहाँ किसीभी सूक्ष्म स्थूल जीव जड़ादि अवयवोंके लिये प्रवेशकरने की अनुमति नहीं होती, जहां गति स्थितिकी शक्तियोंकी महानता प्रचंडाग्नि के आक्रोश से स्पर्शित घृत पिंड की तरह विगलित हो शून्य में तिरोहित होजाती है । विकराल महाकाल का अननुमेय उद्दाम महाप्रवाह प्रवेशाधिकार से भी वंचित हो मानो निराशित प्रेमी की तरह महापेक्षा का ब्रत ले, विस्तीर्ण अनुलंघनीय प्रशांतोदधि के इहोपकूल पर ही विश्राम लेकर एकटक उस अभेद्याकाश की अनिर्वचनीय अज्ञात गहनता के सम्मुख नत मस्तक हो सदाकाल निश्चेष्ट पड़ा हो । .. यह महाकाश सत्य के किस उद्देश्य की अभिव्यक्ति के लिये तत्वोल्लेख में स्थान पा सका है यह एकाग्र ध्यान द्वारा ज्ञान के प्रकाशपुज का अवलोकन करने वाले मेधावियों से अविदित