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की वस्तु नहीं है-इस इतने से रेखा चित्र के लिये तो शोधक या वैज्ञानिक आदि वारात्री मरते पचते रहते हैं। जहां परिणामों का भव्य उल्लेख उत्पन्न हुआ कि तद् क्षेत्र गमन का सम्पूर्ण सहारा मिला; आधा कार्य तो इस परिणामानुसंधान की धारा का ।
आविष्कार करते ही पूर्ण हो जाया करता है। उद्देश्य की कार्य | सिद्धि के पूर्व उपलब्धि ही मानव की सब से बड़ी आशा है और इसी के सहारे ही तो मानव मानव है तथा तभी सदा काल ज्ञान पथ पर अग्रसर हो सका है। ___ अतः प्रयोग साहित्य के अभाव में भी भारतीय संस्कृति के विचार साहित्य का मूल्य अमूल्य है, जिसका आधार ले अंधकार की पड़ते एक २ कर दूर करते हुए उत्साही मानव अंधकार में प्रकाश करता जा रहा है ( पाश्चात्य मनीषियों ने इस साहित्य को दीपशिखा की उपमा दी है)।
अणुओं के आकार संबंधी विवेचन भी गहन विचार की अपेक्षा रहते हैं एवं प्रसङ्गवश यह उल्लेख भी सार गर्भित है कि स्कंध विशेष में परिणत होने के उपरांत प्रत्येक अणु विशेषाकार धारण कर लेता है । स्थूलतर स्वरूपों के निर्माण के हेतु सादृश्य असाद्रश्य गुण, आकार व संख्या युक्त विशिष्ट कोटि के सूक्ष्म स्कन्ध उपादेय होते है, यह कथन ( इस तरह के अनेक उपयोगी उल्लेख महावीर के साहित्य में भरे पड़े हैं) अत्यंत गहन विचार शक्ति के तुलनात्मक वोध की अभिव्यक्ति को प्रमाणित करता है।
* अणु के सूक्ष्म मूल गुणों की अपक्षाकृत दूर प्रवेश से ग्रहण करना सम्भव है एवं ये सूक्ष्म गुण विद्य त लहरों की तरह
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